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विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि इन भांति मन की खांति बारह, मास विरह विलास। करि कइ प्रिया प्रिय पासि चरित्र, ग्राउ आनि उल्लास ॥ दोउं मिले सुन्दर मुगति मंदिर, भइ जहाँ अति भंद्र मृदु वचन ताकउ रचन भाषत, विनयचन्द्र कवीन्द्र ॥१३।।आ०॥
॥ इति श्री नेमिनाथ राजीमत्योर्द्वादश मास ।। ॥ श्री संखेश्वर पार्श्वनाथ वृहत्स्तवनम् ।।
ढाल-कोइलो परवत धुंधलउ, एहनी श्री संखेश्वर पास जी रे लो,
सुणि वारू दोइ वइण रे सनेही। दरसण ताहरउ देखिवा रे लो,
तरसे माहरा नइण रे सनेही ॥१ श्री०।। चोल मजीठ तणी परइ रे लो,
- लागउ तुझ सुँ प्रेम रे सनेही। हियडउ हेजइ ऊलसइ रे लो,
__ जलहर चातक जेम रे सनेही ॥२ श्री०।। हूँ जाएँ जइ नइ मिलूँ रे लो,
साहिब नइ इकवार रे सनेही । सयणा रइ मेलइ करी रे लो,
. सफल हुवइ अवतार रे सनेही ॥३श्री०।। वाल्हा किम आएँ तिहां रे लो,
वेला विषमी जाय रे सनेही।
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