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पंच
विहरमान जिनवीसी
कल्पतरु अवतर्या रे,
अंगुलि मिसि तुम्ह बाँहि हो जिनजी अ० ।
तुम्ह दानइ किंकर थका रे,
सेवइ तेह उच्छाहि हो जिनजी से० ||३|| जिoll सुक्ख अतींद्रिय द्यौ तुम्हे रे,
ते गुण नहीं ते मांहि हो जिनजी ते० । तिण हेतर परगट नहीं रे,
सांप्रत मनुजन मांहि हो जिनजी सां०|| ४ | सुग्रीव कुल मलयाचलई रे,
चन्दन विजयानन्द हो जिनजी चं० । विनयचन्द्र वंदइ सदा रे,
त्रीजा श्रीजिनचन्द्र हो जिनजी ||५||||जि०॥
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|| श्री सुबाहु जिन स्तवनम् ॥ देशी छींडीनी
श्री सुबाहु जिनवर नई नमियई, उमाह बहु आणी । जस प्रभुता नउ पारन लहियइ, किम कहि सकियइ वाणी ॥१॥ प्राणी प्रभु लीधु चित्त ताणी, प्रभु मूरति उपशमनी खाणी,
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मुझ मन ए ठकुराणी रे प्रा० ॥ ज्ञानी जाणइ पिण न कहाय, सर्व थी जस गुण खाणी । परिमलता गुणनी अति निर्मल, जिम गंगा नउ पाणी रे ||२|| प्रा०||
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