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चतुर्विशतिका जेहषी प्रीति कुटिल नारी नी,
जेहवी हो २ बादल केरी छांहड़ी जी। जेहवी मित्राई भेषधारी नी,
तेहवी हो २ कापुरुषां री बांहड़ी जी ॥४॥ पिण तुम्हे सगुण सापुरिस सवाई,
पाई हो २ बांहड़ली मंइ तुम तणी जी॥ सफल करउ जिनवर चित लाइ,
- मीनति हो २ सी करियइ घणी जी ॥५॥ शिव सुख फल तुझ पासइ चाहूं,
तुं हीज हो २ सुरतरु मोरियउ जी। आज बधावउ जाणी मन में उमाहुँ,
हुइज हो २ प्रेम अंकूरियउ जी ॥६॥ अधिकउ तउ ओछउ सेवक भाषइ नइ भाखइ,
__साहिब हो २ तेह सदा खमइ जी। विनयचन्द्र कवि कहइ तुम्ह पाखइ,
किणसु हो २ माहरउ मन रमइ जी ॥ ७॥
॥ श्री विमलनाथ स्तवनम् ॥
ढाल-चतुर सुजाणा रे सीता नारी विमल जिनेसर सुणि अलवेसर, माहरा वचन अनूप । मनड़ौ विलूधौ रे ताहरै रूप, जेम विलूधौ रे कमल मधूप ॥oli ताहरा रूप माहे काई मोहनी, मिलवानी थइ चूंप ॥१॥ म० ।।
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