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विनयचन्द्र भी इस रचना को अपना प्रथमाभ्यास सूचित करते हैं । जिनरत्नकोश के अनुसार इसके अतिरिक्त तपागच्छीय जिनकीर्त्ति, सोममण्डन और शुभशील के भी संस्कृत चरित्र उपलब्ध है तथा भाषा में महीचन्द्र ने सं० १५६१ जौनपुर में विजयशील ने सं० १६४१ में, लब्धिविजय ने सं० १७०१ में, कवि जिनहर्ष ने सं० १७४५ पाटण में तथा राजरत्न ने सं० १८५२ में खेड़ा में रास चौपाई बनाये जो सभी उपलब्ध हैं ।
कविवर विनयचन्द्र के व्यक्तित्व और रचनाओं का थोड़ा विहंगावलोकन पिछले पृष्ठों में कराया जा चुका है। इस ग्रन्थ में अब तक की उपलब्ध कविवर की समस्त रचनाएँ दी जा चुकी हैं। अन्त में कविवर की कृतियों में प्रयुक्त देसियों की सूची देकर इस ग्रन्थ में आये हुए राजस्थानी व गुजराती शब्दों का कोष प्रकाशित किया है। इसमें शब्दों के अर्थ की ओर नहीं, पर भावार्थ की ओर ही लक्ष्य रखा गया है, एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं पर जहाँ जिस भाव में उसे प्रयुक्त किया है उसे समझने में पाठकों को सुगमता हो, यही इसका उद्देश्य है ।
कविवर की जीवनी के विषय में हम अधिक सामग्री उपलब्ध न कर सके पर जितना भी ज्ञात हुआ, दिया गया है । कविवर के हस्ताक्षर व उनकी रचनाओं की प्रति के अन्तिम पृष्ठ का ब्लाक बनवा कर इस ग्रन्थ में प्रकाशित कर रहे हैं ताकि उनकी व उनके गुरु की अक्षरदेह के दर्शन हो सके। यह पुस्तक जिस रूप में प्रकाशित हो रही है उसका
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