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विदेशों में जैन धम
यूनान और मध्य एशिया पर भी अपनी सैनिक विजय स्थापित कर चुके थे। आर्यों की विजय से इन क्षेत्रों की हजारों वर्ष पुरानी पूर्ण विकसित जैन संस्कृति और सभ्यता (श्रमण संस्कृति) सम्पूर्णतया नष्ट-भ्रष्ट हो गई। तीन-तीन आर्य-श्रमण (आर्य-जैन) दीर्घकालिक महायुद्ध हुए और अनेकानेक समर हुए।
प्रथम आर्य-श्रमण (आर्य-जैन ) महायुद्ध 3000 ईसा पूर्व से 1185 ईसा पूर्व के मध्य लडा गया, जिसमें आर्यों की विजय हुई। द्वितीय आर्य श्रमण (आर्य-जैन ) महायुद्ध 1200 ईसा पूर्व से 1140 ईसा पूर्व के मध्य हुआ, जिसमें भूमि पर युद्धो के साथ-साथ नौसैनिक युद्ध भी हुए। ये नौसैनिक युद्ध तत्कालीन श्रमणतन्त्रीय पणि (जैन) जनपदों अर्थात् मोहनजोदडो जनपद, अर्बुद जनपद, क्रिवि जनपद आदि अनेक पणि (जैन) जनपदों के साथ हुए। इनमे भी आक्रमणकारी आर्य सेनायें ही विजयी रहीं। तृतीय आर्य- श्रमण (आर्य- जैन ) महासमर 1140 ईसा पूर्व से 1100 ईसा पूर्व तक चला। इस महासमर में दाशराज्ञ युद्ध सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है जिसमें दस भारतीय तत्कालीन श्रमण (जैन) जनपदों ने, अर्थात् पूरु जनपद अनु जनपद, द्रुह्यु जनपद, यदु जनपद, तुर्वस जनपद, वृचीवन्त जनपद. मत्स्य जनपद, अगन जनपद शिग्रु जनपद और यक्ष जनपद, इन दस जैन धर्मावलम्बी जनपदों ने मिलकर भारतों के नाम से (जो ऋषभपुत्र चक्रवर्ती भरत के नाम पर भारत कहलाते थे) संघ महाजनपद बनाकर विश्वामित्र के प्रधान सेनापतित्व मे सुदास, इन्द्र और आर्यों के महासेनापति वशिष्ठ के साथ युद्ध लडा था। उसमें भी अततोगत्वा आर्य सेनायें विजयी रहीं तथा 1100 ईसा पूर्व में आर्य लोग उदीच्य (पश्चिम) भारत के सत्ताधारी और शासक बन गये । 139140
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अध्याय 2
भारतीय संस्कृति : प्रामार्य और प्राग्वैदिक काल
वैदिकं साहित्य के अनुशीलन से तथा लघु एशिया (एशिया माइनर ) के पुरातत्त्व एवं मोहनजोदडो, हडप्पा, कालीबंगा आदि सिंधुघाटी सभ्यता के