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विदेशों मे जैन धर्म
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अरबी जैन" हुई। जैन संस्कृति ने इस प्रकार ईरान (पारस्य) की संस्कृति पर भी व्यापक प्रभाव डाला। जब अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर के सर्वज्ञ सर्वदर्शी होने की खबर ईरान में फैली तो उनके पावन दर्शन के लिए हजारों ईरानी भारत आये थे। उनमें मगध सम्राट बिम्बसार के पुत्र सजकुमार अभय के मित्र ईरान के राजकुमार आर्दशक भी थे। वे भी भगवान महावीर के उपदेश से प्रभावित होकर जैन मुनि हो गये थे और ईरान में जैन धर्म व संस्कृति का व्यापक प्रचार-प्रसार करते रहे।
कालान्तर में सम्राट अशोक और सम्राट सम्प्रति ने अपने धर्म रज्जुकों, भिक्षुओं और मुनियों को धर्म प्रचारार्थ ईरान भेजा। अरब और ईरान में और भी जैन सन्त प्रचारार्थ जाते रहे। इतिहाकार जी. एफ. मूर के अनुसार. "हजरत ईसा के जन्म की शताब्दी के पूर्व ईराक, श्याम और फिलिस्तीन में जैन श्रमण और बौद्ध भिक्षु सैकड़ों की संख्या में फैले हुए थे। "
सन् 80 ई. में सोपारक से एक भारतीय राजदूत यूनान गए थे उनके साथ जैनाचार्य भी गए थे और उन्होंने यूनान में जैन संस्कृति का महत्त्वपूर्ण प्रचार किया और अन्त में एथेन्स नगर में समाधिमरण प्राप्त किया ।
अति प्राचीन काल में बेलीलोन, केपाडोसिया, ईराक और तुर्किस्तान आदि देशों का भारत से घनिष्ठ सांस्कृतिक और व्यापारिक सम्बन्ध था । इन सभी स्थलों पर जैन साधु और श्रावक लाखों की संख्या में निवास करते थे तथा वहां सर्वत्र हजारां जैन मन्दिर विद्यमान थे।
अध्याय 21
कलिंगाधिपति चक्रवर्ती सम्राट् महामेघवाहन खारवेल और जैन धर्म का देश-विदेशों में व्यापक प्रचार
खण्डगिरि (उड़ीसा) में एक प्राचीन शिलालेख है जिसमें तीर्थंकर ऋषभदेव की एक मूर्ति का उल्लेख है। आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व उस मूर्ति