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विदेशों में जैन धर्म
वीरपुर (सिन्ध), उच्चनगर, पाशुनगर (पेशावर), जोगिनीपुर (दिल्ली) आदि है। उसने पंजाब में अनेक नगरों में भी जैन मन्दिरों का निर्माण कराया और वहां सर्वत्र जैन धर्म का प्रचार किया। 124 कवि कल्हण ने अपनी राज तरंगिणी में इसका विस्तार से उल्लेख किया है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी कश्मीर और उसके परिवर्ती क्षेत्रों की जैन धार्मिक स्थिति पर प्रकाश डाला है और लिखा है कि लोग अपने-अपने इष्टदेवों के मन्दिरों और स्मारको में उपासना करते थे ।
अध्याय 24
एबीसीनिया और इथोपिया में जैन धर्म
ग्रीक इतिहासकार हेरोडेटस ने एबीसीनिया और इथोपिया मे जैन धर्मानुयायी जिम्नोसेफिस्टों के अस्तित्व का उल्लेख किया है। सुप्रसिद्ध भारतीय इतिहासकार पं. सुन्दरलाल ने अपनी सुप्रसिद्ध पुस्तक "ईसा और ईसाई धर्म" में लिखा है कि उस जमाने के इतिहास से पता चलता है कि पश्चिमी एशिया, यूनान, मिश्र और इथोपिया के पहाड़ों और जंगलो में उन दिनों हजारो जैन सन्त महात्मा जगह-जगह बसे हुए थे।
प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् वान क्रेमर के अनुसार, मध्य पूर्व एशिया में प्रचलित "समानिया" सम्प्रदाय श्रमण जैन सम्प्रदाय था । प्रसिद्ध विद्वान जी.एफ. मूर ने लिखा है कि ईसा की जन्मशती के पूर्व मध्य एशिया, ईराक, श्याम और फिलिस्तीन, तुर्किस्तान आदि में जैन मुनि हजारों कि संख्या में फैलकर अहिंसा-धर्म का प्रचार करते रहे। पश्चिमी एशिया, मिश्र यूनान और इथोपिया के जंगलों में और पहाड़ों पर उन दिनों अगणित जैन साधु रहते थे जो अपने त्याग और अपनी विद्वत्ता के लिए प्रसिद्ध थे। मेजर जनरल जे.जी. आर. फरलॉग ने अपनी खोज से सिद्ध किया है कि आक्सियाना, समरकन्द, कैस्पिया और बल्ख नगरों में जैन धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार था। यहूदी लोग भी जैन संस्कृति से अत्यन्त प्रभावित थे तथा उनमें ऐसे लोगों का एक व्यापक एस्मिनी सम्प्रदाय बन गया था।.