Book Title: Videsho me Jain Dharm
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 85
________________ 85 विदेशों में जैन धर्म को संसार भर के शेष देश प्रदान किये थे। बाहुबली ने बाद में अपने पुत्र महाबली को पोदनपुर राज्य सौंपकर मुनिदीक्षा ली। पोदनपुर वर्तमान पाकिस्तान क्षेत्र में विजयार्ध पर्वत के निकट सिन्धु नदी के सुरम्य एवं रम्यक देश उत्तरापथ में था और जैन संस्कृति का अद्धितीय जगत-विख्यात विश्वकेन्द्र था। महाभारत (द्रोणपर्व) में भी पोतन (पोतन्य) का उल्लेख हुआ है। कालान्तर में पोदनपुर अज्ञात कारणो से नष्ट हो गया। .. पाकिस्तानी क्षेत्र एव सम्पूर्ण परिवर्ती देशो में जैन संस्कृति के सार्वभौम एवं सार्वयुगीन प्रचार-प्रसार का लगभग आठ हजार वर्ष से भी अधिक पुराना इतिहास मिलता है। ऋषभ युग से लेकर नेमिनाथ के तीर्थंकाल पर्यन्त सम्पूर्ण विश्व मे जैन सस्कृति की व्यापक प्रभावना रही। नदी घाटी सभ्यताओं में सर्वाधिक ज्ञात सभ्यता सिन्धु घाटी सभ्यता है जो पाकिस्तान और उसके परिवर्ती क्षेत्रों में फैली हुई थी। भारत, पाकिस्तान और परिवर्ती क्षेत्रों में लगभग 250 स्थानों पर हुए उत्खननों से इस व्यापक द्रविड़-विधाधर-व्रात्य-पणि-नाग-असुर संस्कृति पर प्रकाश पड़ा है। इसका उत्कर्षकाल लगभग 4000 ईसा पर्व रहा है। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव इस सभ्यता के परम आराध्य एवं उपास्य थे, जैसा कि ऋग्वेद की 141 ऋषभवाची ऋचाओं, केशीसूक्त एवं भारत जातिपरक उल्लेखों से तथा अथर्ववेद के व्रात्य काण्ड, विभिन्न उपनिषदों एवं सुविस्तृत पुराण साहित्य से प्रकट है। उसी युग में हड़प्पा-पूर्व अवहड़प्पो सस्कृतियों की विद्यमानता के भी संकेत मिले है जो वस्तुतः उसी परम्परा की जैन श्रमण संस्कृतियां थीं। सिन्धु सभ्यता काल में जैन पणि व्यापारियों का विश्वव्यापी च्यापार साम्राज्य था जो हजारों वर्ष तक कायम रहा । सिन्धु सभ्यता के विभिन्न स्थलों से प्राप्त सैकडों मुद्राओं के सूक्ष्म विश्लेषण एवं सांस्कृतिक निर्वचन से भी इसी वस्तुस्थिति की पुष्टि होती है। पार्श्वनाथ-महावीर युग (800-600 ईसा पूर्व) में भारत में 16 जैन धर्म-बहुल महाजनपद विद्यमान थे जिनके अन्तर्गत वर्तमान पाकिस्तान क्षेत्र, सिन्धु सौवीर एवं गांधार भी आता था। 326 ईसा पूर्व में सिकन्दर के आक्रमण और जैन महाराजा पुरु के साथ हुए उसके युद्धों के विवरणों एवं यूनानियों के इतिहास विवरणों, मुनि कल्याण विजय, जैनाचार्य दौलामस (धृतिसेन) आदि विषयक उल्लेखों से भी इसी बात की पुष्टि होती है। मौय सम्राट चन्द्रगुप्त, अशोक, सम्प्रति

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