Book Title: Videsho me Jain Dharm
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 89
________________ विदेशों में जैन धर्म को दिया था। वे इस प्रदेश के राजा थे। कल्प-सूत्र के अनुसार, "भगवान ने अपनी पुत्री ब्राह्मी, जो भरत के साथ सहजन्मा थी, बाहुबली को दी थी। उसका अधिवास इधर ही था। अन्त में वह प्रव्रजित होकर और सर्वायु को भोगकर सिद्धलोक को गई। 194 वस्तुतः ब्राह्मी इस प्रदेश की महाराज्ञी थी । अन्त में, वह साध्वी प्रमुख भी बनी और उसने तप किया। वह लोकप्रिय हुई और आगे चलकर उसकी स्मृति में जनसाधारण ने भारतीय जनमानस की श्रद्धा स्वरूप उसके नाम पर कभी एक विशाल मन्दिर का निर्माण किया। ऐसा प्रतीत होता है कि काल के अन्तराल में अन्य धर्मावलम्बियों ने उसे विनष्ट कर अपनी नई स्थापनायें की हों तथा वेदी अपनी सुन्दरता के कारण बच गई हो और उस पर गणेशजी की मूर्ति विराजमान कर दी गई हो। ऐसा भारत के अन्य अनेक स्थानों पर भी हुआ है। 89 मोहन-जो-दडो आदि की खुदाइयों में जो अनेकानेक सीलें प्राप्त हुई है, उन पर नग्न दिगम्बर मुद्रा मे योगी अंकित है, उनमे नाभिराय, ऋषभ, भरत. बाहुबली (बेल चढा हुआ अंकन) आदि सभी के तथा विविध प्रसंगों के अंकन है। वे सब शाश्वत जैन परम्परा के द्योतक हैं। मोहनजोदडो, हडप्पा. - - कालीबंगा आदि दो सौ से अधिक स्थानों के उत्खनन से जो सीलें, मूर्तियां एवं अन्य पुरातात्विक सामग्री प्राप्त हुई है. सब शाश्वत जैन परम्परा की द्योतक है। सीलो पर नग्न दिगम्बर मुद्रा में योगी अकित है, उनमे ऋषभ, भरत, बाहुबलि आदि सभी के अंकन तथा सुसमृद्ध विश्वव्यापी जैन परम्परा से सम्बद्ध विविध प्रसंगों एवं लौकिक-आध्यात्मिक अवसरो के अंकन है। उनमें से एक सील पर महातपस्वी बाहुबलि का चित्र भी है, एक ऐसा महातपस्वी तप करते हुए जिस पर बेलें पौड गई थीं। उक्त सील पर यह बेल चढ़ा हुआ चित्र ही अंकित है। मोहन-जो-दडो से उत्खनित सामग्री में नामिराज की एक मूर्ति भी प्राप्त हुई है जिसका राजमुकुट उतरा हुआ है। अनुमान है कि नाभिराज द्वारा ऋषभदेव के सर पर राजमानाङ्क पहनाने के बाद का यह चित्र है । आचार्य जिनसेन ने भी ऐसे ही एक चित्र की काव्यात्मक प्रस्तुति की है। 95 ( आचार्य जिनसेन आदि पुराण, 16 / 232 ) 1

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