________________
विदेशों में जैन धर्म
104
भारत से गई हुई हैं।
फ्रांस में 1100 से अधिक बडे पुस्तकालय है जिनमें पेरिस स्थित बिब्लियोथिक नामक पुस्तकालय में 40,00,000 (चालीस लाख) पुस्तके है। उनमें बारह हजार पुस्तकें प्राकृत संस्कृत भाषा की है और भारत गई हुई हैं जिनमें जैन ग्रन्थों की अच्छी संख्या है।
रूस में 1,500 बड़े पुस्तकालय हैं। उनमे एक राष्ट्रीय पुस्तकालय भी है जिसमे 50,00,000 (पांच लाख) पुस्तकें है। उनमें 22.000 पुस्तके प्राकृत संस्कृत की हैं और भारत से गई हुई हैं। इसमे जैन ग्रन्थों की भी बडी संख्या है।
इटली मे लगभग 4,500 पुस्तकालय हैं। उनमें से प्रत्येक में लाखों पुस्तकों का संग्रह है। कोई 60,000 (साठ हजार ) पुस्तकें प्राकृत संस्कृत की है जो प्रायः भारत से गई हुई हैं। इनमें जैन पुस्तके भी बडी संख्या मे
1
नेपाल के काठमाडू स्थित पुस्तकालयों मे एवं अन्यत्र हजारो की सख्या मे जैन प्राकृत ओर संस्कृत ग्रंथ विद्यमान है तथा शोध खोज की अपेक्षा रखते
1
इसी प्रकार, चीन, तिब्बत, ब्रह्मा, इण्डोनेशिया, जापान, मगोलिया, कोरिया, तुर्की, ईरान, असीरिया, काबुल आदि के पुस्तकालयों में भी भारतीय ग्रन्थ बडी संख्या मे मौजूद है।
भारत से विदेशो मे ग्रथ ले जाने की प्रवृत्ति केवल अंग्रेजों के काल से ही प्रारम्भ नहीं हुई, अपितु इससे हजारो वर्ष पूर्व भी भारत की इस अमूल्य निधि को विदेशी लोग अपने-अपने देशों मे ले जाते रहे है। उदाहरण के लिए, विक्रम की पाचवी शताब्दी मे चीनी यात्री फाह्यान भारत में आया था और यहा से ताडपत्रो पर लिखी हुई 1520 पुस्तकं चीन ले गया था ।
विक्रम की सातवी शताब्दी मे चीनी यात्री हुएनसाग भारत में आया था और वह भी अपने साथ पहली बार 1550 पुस्तके, दूसरी बार 2175 पुस्तकें और तदुपरान्त सन् 464 ईसवी के आसपास 2550 ताडपत्रो पर लिखे हुए ग्रन्थ अपने साथ चीन ले गया। इस प्रकार समय-समय पर विश्व के विभिन्न देशो से सैकडो यात्री आते रहे और वे अपने साथ महत्त्वपूर्ण भारतीय साहित्य ले जाते रहे। वे लोग भारत से कितने ग्रंथ ले