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विदेशों में जैन धर्म
स्तूपों और स्मारकों को नष्ट-भ्रष्ट किया गया। अनेक जैन मन्दिरों को हिन्दू और बौद्ध मन्दिरों में परिवर्तित कर लिया गया तथा उनमें मस्जिदे बना ली गई। दिल्ली की कुतबमीनार, अजमेर का ढाई दिल का झोपड़ा, काबुल, कन्धार, तक्षशिला आदि के जैन मन्दिरों का परिवर्तन आदि इसी प्रकार के उदाहरण हैं और वे जैन मन्दिरो के अवशेष है।
अनेक जैन मूर्तियों, मन्दिरों, गुफाओ, स्मारकों, शिलालेखों आदि को बौद्धो का बना लिया गया। जो कुछ बघ पाये उनका जीर्णोद्धार करते समय असावधानी, अविवेक और अज्ञानता के कारण, उनके शिलालेखो, मूर्ति लेखों आदि को मिटा दिया गया या नष्ट को जाने दिया गया। अनेक खंडित अखडित जैन मूर्तियों को नदियो, कुओं, समुद्रों में डाल देने से हमारी ही नासमझी से प्राचीन जैन सामग्री को नष्ट हो जाने दिया गया। प्रतिमाओ का प्रक्षाल आदि करते समय बालाकूची से मूर्ति लेख घिस जाने दिए गए। अनेक जैन मन्दिर, मूर्तिया आदि अन्य धर्मियो के हाथो मे चले जाने से अथवा अन्य देवी-देवताओ के रूप में पूजे जाने से जैन इतिहास और पुरातत्त्व एवं कला सामग्री को भारी क्षति पहुची है। जैन समाज में ही मूर्तिपूजा विरोधी सम्प्रदायों द्वारा जैन तीर्थो मन्दिरो मूर्तियो आदि को हानि पहुंचाई जाने से जैन इतिहास और पुरा- सामग्री को कोई कम क्षति नही उठानी पडी । मात्र इतना ही नही. दिगम्वर - श्वेताम्बर मान्यता के भेद ने भी जैन इतिहास को धुंधला बनाया है।
पुरातत्त्वेत्ताओ की अल्पज्ञता, पक्षपात तथा उपेक्षा के कारण भी जैन पुरातत्त्व सामग्री को अन्य मतानुयायियों की मानकर जैन इतिहास के साथ खिलवाड किया गया। प्रसिद्ध इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ का कहना है कि फिर भी इतिहास की निरन्तर शोध-खोज से आज भूगर्भ से तथा इधर-उधर बिखरे पडे बहुत से प्रमाणो से गत 150 वर्षों में जैन इतिहास के ज्ञान मे जितनी वृद्धि हुई है उससे जैन धर्म के इतिवृत्त पर काफी प्रकाश पडा है 193