Book Title: Videsho me Jain Dharm
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 99
________________ विदेशों में जैन धर्म 99 वह लादेश का भाण्डलिक राजा भी था। उसने कय्य स्वामी का एक उद्भुत जैन मन्दिर बनवाया था।3।। तीर्थंकर पार्श्वनाथ का विहार भी हिमाद्रि कुमी (कश्मीर) तक हुआ था । महावीर का विहार भी हिमाद्रि कुक्षी (कश्मीर) में हुआ था 51 श्री माल पुराण (अध्याय 73; श्लोक 27.30) में लिखा है कि महावीर दीक्षा लेकर बहुत काल तक निराहार रहकर तप करते रहे जिस महाउग्रतप से सर्वत्र जैन धर्म की प्रभावना बढी। जब महावीर का कश्मीर में विहार हुआ तब वहां भी जैन धर्म का विशेष प्रसार हुआ। कश्मीर नरेश सत्यप्रतिज्ञ अशोक महान् का समय तीर्थकर पार्श्वनाथ के पूर्व का अर्थात् सन् 1445 ईसा पूर्व का है तथा सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र सम्राट अशोक मौर्य के राज्यारुढ़ होने का समय ईसा पूर्व 274 का है। इस अशोक मौर्य की मृत्यु ईसा पूर्व 232 में हुई। इन दोनों अशोकों के राज्यारोहण के समय में 1171 वर्षों का अन्तर है अर्थात 12 शताब्दियों का अन्तर है। कुछ इतिहासकारों ने भ्रमवश दोनों अशोकों को एक मानने की भी गलती की है। अध्याय 55 बंगलादेश एवं परिवर्ती क्षेत्रों में जैन धर्म प्राग्वैदिक और प्रागार्यकाल से ही शेष भारत की ही भांति बंगलादेश और उसके परिवर्ती सम्पूर्ण पूर्वी क्षेत्र और कामरूप जनपद में जैन संस्कृति का व्यापक प्रचार-प्रसार रहा है जिसके प्रचुर संकेत सम्पूर्ण वैदिक और परवर्ती साहित्य मे उपलब्ध है। आर्यों से परास्त होने के पश्चात् जैनधर्मी श्रमण, वर्तमान मगधों के पूर्वज और द्रविड़ वर्ग पूर्वी क्षेत्रों की ओर सिमट गए जहां सम्पूर्ण क्षेत्र में उनके अनेकानेक जनपद आगामी हजारों वर्षों तक फलते-फूलते रहे । पार्श्वनाथ-महावीर युग (800-600 ईसा पूर्व) में भारत में 16 महाजनपद विद्यमान थे जिनमें से अनेक महाजनपदों का विस्तार पूर्वी क्षेत्रों. प्रदेशों एव वर्तमान बंगलादेश तक था। ये सभी महाजनपद जैन संस्कृति के केन्द्र

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