Book Title: Videsho me Jain Dharm
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 97
________________ विदेशों में जैन धर्म 97 के नाम से वहीं पर बसाया जिसे हूणों ने पाचवीं शताब्दी ईसवीं में ध्वस्त कर दिया । अन्त मे महमूद गजनवी के आक्रमण के बाद उसे सदा के लिए समाप्त कर दिया गया। ___ सन् 323 ईसा पूर्व मे, सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात् सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने ग्रीको को पंजाब से बाहर निकाल दिया और तक्षशिला तथा पंजाब के अन्य राज्यों के साथ उसको अपने राज्य में मिला लिया। बाद में तक्षशिला गाधार के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ। अध्याय 54 हिमाद्रि कुक्षी जनपद (कश्मीर) में जैन धर्म अति प्राचीन काल से हिमाद्रिकुक्षी, सतिसर (कश्मीर) जनपद में जैन धर्म की विद्यमानता के प्रमाण उपलब्ध है। यहां शत्रुजयावतार जैन तीर्थ, विमलार्दि जैन महा तीर्थ, विमलाचल तीर्थ आदि विऽव प्रसिद्ध जैन महातीर्थ विद्यमान रहे है। कवि कल्हण ने अपने कश्मीर इतिहास ग्रंथ राजतरगिणी में लिखा है कि राजा शकुनि का प्रपौत्र सत्यप्रतिज्ञ अशोक महान सन् 1445 ईसा पूर्व मे कश्मीर के राजसिंहासन पर बैठा और उसने जैन धर्म (जिनशासन) को स्वीकार किया। कवि कल्हण के अनुसार, कश्मीर के जैन सम्राट सत्यप्रतिज्ञ अशोक महान का समय बाइसवें जैन तीर्थकर अरिष्टनेमि और 23वें जैन तीर्थकर पार्श्वनाथ के मध्य का है। 106 कल्हण ने राजतरंगिणी में लिखा है कि कश्मीर के जैन सम्राट सत्यप्रतिज्ञ अशोक महान ने शुष्कनेत्र तथा वितस्तात्रपुर नामक जैन तीर्थ नगरों को जैन स्तूप मण्डलों (स्तूप समूहों) से आच्छादित कर दिया था। उसने अनेक जैन मन्दिरों तथा नगरों का भी निर्माण किया था। उसने वितस्तात्रपुर के धमरिण्य विहार में इतना ऊंचा जैन मन्दिर बनवाया था जिसकी ऊंचाई देखने में आंखें असमर्थ हो जाती थीं107 1 कश्मीर सम्राट सत्यप्रतिज्ञ अशोक महान ने कश्मीर में "अशोकेश्वर" नामक विशाल जैन मन्दिर का निर्माण भी कराया था जिसमें जैन तीर्थंकरों की स्वर्णमयी प्रतिमायें बड़ी संख्या में विद्यमान थीं।108

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