Book Title: Videsho me Jain Dharm
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 101
________________ विदेशों में जैन धर्म 101 थे। गुप्तकाल में यहां अनेक विशाल जैन विहार होने के प्रमाण मिलते हैं। चीनी यात्री हुएनसांग ने जब छठी शती में इस परिक्षेत्र में भ्रमण किया था तो उसने यहां अनेकानेक जैन मन्दिर, जैन बस्तियां एवं निर्ग्रथ जैन मुनियों को यहां मंगल विहार करते देखा था । वीरभूम वर्धमान, सिंहभूम, मानभूम आदि जो परिक्षेत्रीय नाम यहां मिलते हैं वे महावीर के अनुकरणमूलक नाम हैं जो जैन धर्म का व्यापक प्रभाव होना दर्शित करते हैं। इस सम्पूर्ण क्षेत्र में सर्वत्र हजारों प्राचीन जैन प्रतिमायें, जैन तीर्थों के खण्डहर और उजड़ी हुई जैन बस्तियां इस बात के प्रमाण हैं कि यहां कितना विपुल जैन पुरातात्त्विक वैभव रहा है। यहां आज भी जैन सराकों (श्रावको) की लाखों जनसंख्या विद्यमान है और सर्वत्र उनके जैन देवालय मौजूद हैं। जैन तीर्थंकरों ऋषभदेव, पार्श्वनाथ, महावीर आदि की हजारों प्रतिमायें तो इतर धर्मियों द्वारा भैरव आदि देवताओं के नाम से पूजी जा रही है । १० आज इस कामरूप प्रदेश में जिसमें बिहार, उडीसा और बंगाल भी आते थे, सर्वत्र गांव-गांव, जिलो-जिलो में प्राचीन सराक जैन संस्कृति की व्यापक शोध-खोज हो रही है और नए-नए तथ्य उद्घाटित हो रहे हैं। बिहार में झारखण्ड की स्थापना के बाद, यहा का और मिथिला आदि का सराक शोध कार्य व्यवस्थित हो जाने की आशा है। • पहाडपुर ( जिला राजशाही) (बंगलादेश) में उपलब्ध 478 ईस्वी के ताम्रपत्र के अनुसार, पहाडपुर में एक जैन विहार (मन्दिर) था, जिसमें 5000 जैन मुनि ध्यान अध्ययन करते थे और जिसके ध्वंसावशेष चारों ओर बिखरे पड़े हैं। प्राचीन काल में वह वटगोहाली ग्राम में स्थित पंचस्तूपान्वय के निर्ग्रन्थ श्रमणाचार्य गुहनन्दि का जैन विहार कहलाता था । एक हजार वर्ग गज के परकाटे में चारों और 175 से भी अधिक गुहाकार प्रकोष्ठ थे तथा उनके मध्य स्वस्तिक के आकार का तीन मंजिला सर्वतोभद्र जैन मन्दिर था। इस पंचस्तूपान्वय की स्थापना पौण्ड्रवर्धन निवासी आचार्य अर्हदबली ने की थी । "पौण्ड्रवर्धन" और उसके समीपस्थ "कोटिवर्ष दोनों ही प्राचीनकाल में जैन धर्म के प्रमुख केन्द्र थे। पौण्ड्रक्धन राजनैतिक दृष्टि से बड़ा महत्त्वपूर्ण था, जहां मौर्य और गुप्तकाल में उपरिक (गवर्नर) रहता था । श्रुतकेवली भद्रवाहु और आचार्य अर्हदबली दोनों ही आचार्य इसी नगर के निवासी थे।

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