Book Title: Videsho me Jain Dharm
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 98
________________ 98 . विदेशों में जैन धर्म इतिहासकार मुसलमान हसन ने लिखा है कि अशोक ईसा पूर्व 1445 में कश्मीर के राजसिंहासन पर आरुढ हुआ। उसने जैन धर्म अंगीकार किया। उस धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए उसने प्राणपण से प्रयास किया। कसबा बिजबारह मे कश्मीर सम्राट सत्यप्रतिज्ञ अशोक महान ने जैन धर्म के बहुत ही आलीशान और मजबूत मन्दिर बनवाये। बाबू हरिश्चन्द्र ने अपनी इतिहास पुस्तक "इतिहास समुच्चय' में लिखा है कि कश्मीर के राजवंश मे 47वां राज्य अशोक का हुआ। उसने 62 वर्ष राज किया। श्रीनगर इसी ने बसाया और जैनमत का प्रचार किया। इसके समय मे श्रीनगर की आबादी छह लाख थी। इसका सत्ताकाल 1384 ईसा पूर्व है जो इसकी मृत्यु का समय प्रतीत होता है।109 राजा जलौक-कश्मीर सम्राट सत्यप्रतिज्ञ अशोक महान की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र (48वा शासक) जलौक हिमाद्रि कुक्षी (कश्मीर) की राजगद्दी पर बैठा। वह भी अपने पिता के समान दृढ जैनधर्मी था। इसने अपने राज्य में जैन धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए बहुत कार्य किया। उसने जैन धर्म के प्रसार के लिए राज्य भर मे अनेक जैन मन्दिरो का निर्माण किया और जैन धर्म का व्यापक प्रचार किया। - इसके बाद के इस वंश मे राजा जैनेह और ललितादित्य भी दृढ़ जैन धर्मी थे और उन्होंने जैन धर्म को पुष्ट किया। ललितादित्य का काल वही है जो महावीर और बुद्ध का था तथा उसने विशाल चैत्यों (जैन मन्दिरों) एवं विशाल जिन मूर्तियों से युक्त राज विहार का निर्माण कराया जिस कार्य मे चौरासी हजार तोले सोने का उपयोग किया गया था। साथ ही, उसने ऊचे जैन स्तुप का निर्माण करवा कर उस पर गरुड की स्थापना की। २.६ प्रथम जैन तीर्थकर ऋषभदेव की शासन देवी चक्रेश्वरी की सवारी11 . राजा ललितादित्य के आदेश से उसके तुखार निवासी चड्युण नामक :नुयायी मत्री बार (हिमाद्रि कुक्षी-कश्मीर) मे जैन मन्दिर या था जिसे चव , विहार कहा जाता है। उसने चड्कुल में अपने । मीर नरेशादित्य के लिए, उनकी इच्छानुकूल एक उन्नत . ५ का निमःया था ! सो उसने जिनेन्द्र की स्वर्णमयी + - . श रय नायी था।

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