Book Title: Videsho me Jain Dharm
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 87
________________ विदेशों में जैन धर्म 87 इसी प्रकार, सिंहपुर भी प्राचीन जैन प्रचार केन्द्र के रूप में विख्यात था। सम्राट हर्षवर्धन के काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने यहां की यात्रा की थी जिसने इस स्थान पर जगह-जगह जैन श्रमणों का निवास बताया है.01 जैन परम्परा में सिंहपुर को ग्यारहवें जैन तीर्थकर मेयांसनाथ का जन्म स्थान बताया गया है। कुछ विद्वानों की राय में, जैन ग्रन्थों में उल्लिखित सिंहपुर वाराणसी के पास स्थित सिंहपुरी है। किन्तु अनेक विद्वान इसे पंजाब का सिंहपुर मानते हैं। यहां की खुदाई में बहुत सी जैन मूर्तियां मिली है जिससे स्पष्ट होता है कि यह स्थान जैन धर्म का केन्द्र था। सिंहपुर जैन महातीर्थ सातवीं शताब्दी ईस्वी में चीन यात्री ह्वेनसांग भारत भ्रमण करते हुए सिंहपुर आया था। एलेग्जेडर कनिंघम के अनुसार, यह स्थान पंजाब (पाकिस्तान) में जेहलम जिले में जेहलम नदी के किनारे स्थित है। वहां एक जैन स्तूप के पास जैन मन्दिर और जैन शिलालेख भी था जहां जैन श्रावक दर्शनार्थ आते रहते थे और घोर तपस्या करते थे। यहा पर तेरहवें तीर्थकर विमलनाथ और बाईसवें तीर्थकर अरिष्ट नेमी आदि के मन्दिर थे जिनका जिनप्रभ सूरि ने भी उल्लेख किया है। यह जैन महातीर्थ मन्दिर 14वीं शताब्दी तक विद्यमान था। इस महा जैनतीर्थ का विध्वंस संभवतः सुल्तान सिकन्दर बुतशिकन ने किया था। डॉ. वूहलर की प्रेरणा से डॉ. स्टाइन ने सिंहपुर के जैन मन्दिरों का पता लगाने पर कटाक्ष से दो मील की दूरी पर स्थित "मूर्तिगांव में खुदाई से बहुत सी जैन मूर्तियां और जैन मन्दिरों तथा स्तूपों के खण्डहर प्राप्त किए जो 26 ऊंटों पर लादकर लाहौर लाये गए और वहां के म्युजियम में सुरक्षित किए गए।

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