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विदेशों में जैन धर्म
पाटपा में अनेक जैन मन्दिर बनवाये जिनमें सर्वोपरि त्रिभुवनपाल बिहार था। आचार्य हेमचन्द्र और उनके शिष्य मंडल ने कुमारपाल के सहयोग से प्रभूत साहित्य की रचना की। उसने 21 जैन शास्त्र-भंडारों की स्थापना की। उसके ब्राह्मण विद्वानों और कवियशों ने कुमारपाल की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। किसी ने सम्राट अशोक मौर्य से उसकी तुलना की तो किसी ने उसे श्रेणिक बिम्बसार, सम्राट सम्प्रति मौर्य, महामेघवाहन खारवेल, कश्मीर सम्राट् सत्य प्रतिज्ञ अशोक महान जैसे महानं जैसे सम्प्रटों के समकक्ष स्थान दिया है।
जैन धर्म की महिमा के प्रसार के लिए उसने कुमार विहार मन्दिर आदि मे अष्टानिका महोत्सव आदि बडे उत्साह से मनाये। कुमारपाल की आज्ञा से उसके अधीनस्थ 18 देश-विदेशों के माण्डलिक राजाओं ने और सामन्त राजाओं ने अपने-अपने राज्यों में कुमार विहार नामके जैन मन्दिरों का निर्माण कराया !
अपने अधीनस्थ राज्यों में उसने जीवहिसा बन्द कराई। उत्तर में कश्मीरक प्रदेश जनपद से उसे भेंट आती थी तथा मगध, सौराष्ट्र, सिन्धु पंजाब आदि उसके अधीन थे। आचार्य हेमचन्द्र ने महावीर चरित्र में लिखा है कि राजा कुमारपाल की आशा का पालन उत्तर में तुर्किस्तान और पश्चिम में समुद्र- पर्यन्त देशो तक होता है। उसने अपने राज्य के सभी जनपदों में जैन धर्म का व्यापक प्रचार और प्रसार कराया । 123
अध्याय 23
मांडवगढ़ के महामंत्री पेथड़शाह (सुकृत काली 1318-1338 विक्रम) और जैन धर्म
इसने भारत और विदेशों के 94 नगरों में जैन मन्दिरों का निर्माण कराया; भारत और विदेशों के विभिन्न जनपदों में उसने जैन तीर्थ यात्रा के संघ निकाले । इतिहासकार लिखते हैं कि पेथड़शाह जहां-जहां यात्रा करने गया, वहां-वहां वह जैन मन्दिरों का निर्माण कराता गया। उन मन्दिरों में से पाकिस्तान के पारकर (सिन्धु जनपद ) देपालपुर (सिन्ध) त्रिगर्त.