Book Title: Videsho me Jain Dharm
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

View full book text
Previous | Next

Page 64
________________ 64 सध्या 25 विदेशों में जैन धर्म राक्षस्तान में जैन धर्म मिश्र के दक्षिण के भूभाग को प्राचीन यूनानी लोग राक्षस्तान कहते थे। इन राक्षसों को जैन पुराणों में विधाधर अर्थात् वैज्ञानिक कहा गया है। वे श्रमण (जैन) धर्म के अनुयायी थे। इस समय यह भूगाग सूडान, एबीसिनिया और इथोपिया कहलाता है। यह सारा क्षेत्र श्रमण संस्कृति का क्षेत्र था । मूडबिद्री आदि दक्षिणभारत के जैन तीर्थों के जैन व्यापारी एशिया और अफ्रीका के विभिन्न देशों से व्यापार करते थे तथा वहा से आभूषण, मोती आदि मंगवाते थे। अफ्रीका में स्थान-स्थान पर उनकी व्यापारिक कोठिया और जैन मन्दिर विद्यमान थे। ये लोग वहा बिल्कुल साधुओ की तरह रहते थे और वहां अपने त्याग और तपस्या के लिए प्रसिद्ध थे। अध्याय 26 मिश्र (इजिप्ट) और जैन धर्म ब्रिटिश स्कूल ऑफ इजिप्शियन आर्कियोलॉजी के सर फिलंडर्स पैट्री ने मिश्र की प्राचीन राजधानी मैक्फिस मे कुछ भारतीय शैली की मूर्तियों की खोज से यह सिद्ध किया कि प्राचीन मिश्र में लगभग 590 ईसा पूर्व में एक भारतीय बस्ती विद्यमान थी। इनमें से एक मूर्ति तो स्पष्टया जैन आसन में गम्भीर ध्यान-मुद्रा मे पद्मासन में बैठे एक भारतीय योगी की है। आर्य मुसाफिर लेखराम ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "कुलयाते आर्य मुसाफिर" मे इस बात की पुष्टि की है कि उन्होंने मिश्र की विशिष्ट पहाडी पर ऐसी मूर्तियां देखी हैं जो जैन तीर्थ गिरनार की मूर्तियों से मिलती-जुलती है। मिश्रियों के धार्मिक आग्रह और सिद्धांत जैनों से मिलते-जुलते थे। वे विशुद्ध शाकाहारी और अहिंसावादी थे। वे अपने देवता होरस की दिगम्बर

Loading...

Page Navigation
1 ... 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113