Book Title: Videsho me Jain Dharm
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 75
________________ विदेशों में जैन धर्म 75 अहिंसा पर बल देते थे। .एथेन्स में दिगम्बर जैन सन्त श्रमणाचार्य का चैत्य विद्यमान है, जिससे प्रकट है कि यूनान मे जैन धर्म का व्यापक प्रसार था। प्रोफेसर रामस्वामी आयगार ने ठीक ही कहा है कि बौद्ध और जैन श्रमण अपने अपने धर्मों के प्रचारार्थ यूनान, रोमानिया और नार्वे तक गए थे। नार्वे के अनेक परिवार आज भी जैन धर्म का पालन करते है और उनका उपनाम जैन सूचक या तदनुरूप है। सुप्रसिद्ध जैन आचार्य सुशील कुमार जी ने अपनी विश्वव्यापी जैन धार्मिक यात्राओं में नार्वे के ऐसे कुछ जैन परिवारों से सम्पर्क भी किया था। ___ आस्ट्रिया और हंगरी में भूकम्प के कारण भूमि से बुडापेस्ट नगर के एक बगीचे से महावीर स्वामी की एक प्राचीन मूर्ति हस्तगत हुई थी। अतः यह स्वत सिद्ध है कि वहां जैन श्रावकों की अच्छी बस्ती थी। देशो और नगरों मे नामो मे यूरोप के जर्मन और जर्मनी शब्दो का श्रमण और श्रमणी शब्दों से तथा "सारावाक" शब्द का "श्रावक" शब्द से साम्य है। अध्याय 33 ईसाई धर्म और जैन धर्म ईसा से कई शताब्दी पूर्व श्रमण सन्यास की परम्परा अरब, मिश्र. इजराइल और यूनान में जड पकड चुकी थी। सीरिया मे निर्जनवासी श्रमण सन्यासियों के संघ और आश्रम स्थापित थे जो अत्यन्त कठोर तप करते थे। स्वयं ईसा के दीक्षागुरु यूहन्ना इसी सम्प्रदाय के थे। ईसा ने भी भारत आकर सन्यास और जैन तथा भारतीय दर्शनों का अध्ययन किया था। आज भी भारत में सबसे प्राचीन ईसाई "सीरियाई ईसाई" हैं जो ईसा मसीह के प्रत्यक्ष शिष्य संत थामस की शिष्य परम्परा में है। सीरियाई ईसाइयों की जीवनचर्या प्रमण सन्यासियों से अधिक भिन्न नहीं हैं। ईसा मसीह ने बाइबिल में जो अहिंसा का उपदेश दिया था. वह जैन संस्कृति और जैन सिद्धान्त के अनुरूप है। इस उपदेश में जैन संस्कृति की छाप स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।

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