Book Title: Videsho me Jain Dharm
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

View full book text
Previous | Next

Page 80
________________ 80 विदेशो मे जैन धर्म से प्राप्त होती है। जैन तीर्थ अष्टापद (कैलाश पर्वत) हिम प्रदेश के नाम से विख्यात है जो हिमालय पर्वत के बीच शिखरमाला में स्थित है और तिब्बत में है। अध्याय 39 अफगानिस्तान में जैन धर्म अफगानिस्तान प्राचीन काल में भारत का भाग था तथा अफगानिस्तान में सर्वत्र जैन श्रमण धर्मानुयायी निवास करते थे। भारत सरकार के पुरातत्त्व विभाग के भूतपूर्व संयुक्त महानिदेशक श्री टी.एन रामचन्द्रन ने अफगानिस्तान गए एक शिष्ट मण्डल के नेता के रूप मे यह मत व्यक्त किया था कि “मैने ई छठी-सातवीं शताब्दी के प्रसिद्ध चीनी यात्री "ह्वेनसाग" के इस कथन का सत्यापन किया है कि यहां जैन तीर्थंकरो के अनुयायी बड़ी सख्या मे हैं जो लूणदेव या शिश्नदेव की उपासना करते है। ___ अफगानिस्तान में उस काल में ह्वेनसांग ने सैकड़ों जैन मुनि देखे थे। उस समय एलेग्जेन्ड्रा मे जैन धर्म और बौद्ध धर्म का व्यापक प्रसार था। उस काल मे उत्तर पश्चिम सीमा प्रान्त एव अफगानिस्तान में विपुल सख्या में जैन श्रमण विहार करते थे। सिकन्दर के भारत आक्रमण के समय तक्षशिला मे जैन आचार्य दोलामस और उनका शिष्यवर्ग था । कृषि युग के प्रारम्भ से लेकर सिकन्दर के समय तक तक्षशिला मे निर्वाध जैन मुनियों का विहार होता था। सिकन्दर के साथ कालानस मुनि (मुनि कल्याण विजय) यूनान गये थे। पार्श्वनाथ का विहार भी अफगानिस्तान और कश्मीर क्षेत्र मे हुआ था। बौद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 686 ईसवी से 712 ईसवी तक भारत भ्रमण किया था। उसके यात्रा विवरण के अनुसार, अफगानिस्तान के कंपिश देश में दस के करीब देवमन्दिर (जैन मन्दिर) और एक हजार के करीब अन्य मतावलम्बियों के मन्दिर हैं। यहां बड़ी संख्या में निग्रन्थ (जैन मुनि) भी विहार करते हैं। 142 गांधार (प्राचीन नाम आश्वकायन) में सिर पर तीन छत्री सहित

Loading...

Page Navigation
1 ... 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113