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विदेशों में जैन धर्म
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रूप देने में ही जैन लोगों ने विशेष प्रयास किया।
पश्चिम एशिया में मैसोपोटामिया देश अति प्राचीन काल से उत्तर. मध्य और दक्षिण ऐसे तीन विभागों में विभक्त था। उत्तर विभाग अपनी राजधानी असुरनाम के कारण एसीरिया के नाम से पहचाना जाता था । मध्य विभाग की प्राचीन राजधानी कीश थी किन्तु हम्मुराबी के समय में ईसा पूर्व 2123 से 2081 में बेबीलोन के विशेष विकास पर आ जाने के कारण मध्य भाग की राजधानी बेबीलोन बनी और समय बीतने पर मध्य विभाग बेबीलोन के नाम से प्रसिद्धि पा गया । समुद्र तटवर्ती दक्षिण भाग की प्राचीन राजधानी ऐर्ध (म्तपकमन) बन्दरगाह थी । कुछ समय बाद बेबीलोन के शक्तिशाली राजाओ ने इन तीनो भागों पर अपना अधिकार जमा लिया और तीनों संयुक्त प्रदेशो की राजधानी बेबीलोन को बनाया । जैन साहित्य में वर्णित आर्द्रनगर ही ऐ नगर होने के प्रमाण मिलते
हैं।
ईसा पूर्व 604 मे बेबीलाने की गद्दी पर जगत्प्रसिद्ध सम्राट नेबुचेदनेजर (द्वितीय) बैठा। 605 ईसा पूर्व में उसने असीरिया को हराकर सारे प्रदेश को बेबीलन में मिला लिया। बाद में वह दिग्विजय के लिए निकला तथा उसने एशिया और अफ्रीका का विशाल भाग जीत लिया। टायर के बलबे को भी इसने सख्ती से कुचल डाला और इस प्रकार पश्चिमी एशिया का यशस्वी सम्राट् बन गया।
बेबीलान में उसने अनेक जैन मन्दिरो का निर्माण कराया। उसने नगर की रक्षा के लिए नगर को चारों ओर से घेरती हुई भव्य ऊंची दीवाल का निर्माण कराया था। प्रसिद्ध ग्रीक इतिहासकार हेरोडेटस के कथनानुसार, इसका घेराव 56 मील का था तथा यह दीवाल इस नगर की चारों तरफ से लोहे की ढाल के समान रक्षण करती थी। उसने बेबीलन में भव्य स्वर्गीय महलों का निर्माण कराया था जो हैगिंग गार्डन्स कहलाते हैं और विश्व के आश्चर्यों में से है। ईसा पूर्व 326 मे भारत से लौटते हुए यूनानी सम्राट् सिकन्दर महान् इसी महल पर अत्यन्त मुग्ध होकर इसी में ठहरा था तथा इसी महल में उसकी हत्या भी हुई थी ।
नेबुचन्दनेज़र सारे मैसोपोटामिया का सम्राट था। वह भगवान महावीर और मगधपति श्रेणिक बिम्बसार का समकालीन था । मगधपति श्रेणिक