Book Title: Videsho me Jain Dharm
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 65
________________ विदेशों में जैन धर्म मूर्तियां बनाते थे । उत्तरी अफ्रीका में और भूमध्य सागर के साथ-साथ लाखों श्रमण निवास करते थे। आज भी अफ्रीका के विभिन्न देशों में हजारो जैन निवास करते हैं। 65 प्राचीन सभ्यताओ मे मिश्र की सभ्यता अत्यन्त प्राचीन है जिसकी परम्परा भारत की ही भांति सात हजार वर्षों से भी अधिक समय से अक्षुण्ण चली आ रही है। बेबीलोनिया में जैन धर्म का प्रचार बौद्ध धर्म का प्रचार होने से पूर्व ही हो चुका था । इसकी सूचना बौद्ध ग्रन्थ बाबेरू जातक से मिलती है। इसी की समकालीन सभ्यताएं सुमेर, असुर और बाबुल की है तो भारत गए जैन पणि व्यापारियों की समृद्धि के साथ-साथ पनपी और विकसित हुई । मध्य एशिया की संस्कृतियों में सबसे प्राचीन समझी जाने वाली सुमेर और बाबुल की संस्कृति के जनक तीर्थंकर ऋषभदेव के वंशज और अनुयायी रहे हैं। सुमेरी सस्कृति के अनेक चिह्न जैन संस्कृति से मिलते-जुलते हैं। बेबीलोनिया का सम्राट नेबुचदनेजर जैन संस्कृति से आकृष्ट होकर जैन तीर्थ यात्रा के लिए भारत आया था और उसने जैन तीर्थ रैवत गिरनार की यात्रा करके वहां तीर्थकर नेमिनाथ का एक मन्दिर बनवाया था। सौराष्ट्र मे इसी सम्राट नेबुचदनेजर का एक ताम्रपत्र प्राप्त हुआ है। इन सभी सभ्यताओ मे पुरोहित परम्परा का पूर्ण विकास हुआ है। ये श्रमण पुरोहित प्राय पूरे समाज के ही सचालक बन गए थे और उन्होंने भारत की जैन पणि जाति के विश्वव्यापी व्यापार साम्राज्य के अन्तर्गत, साम्राज्यों के निर्माण विनाश तक की सामर्थ्य प्राप्त कर ली थी। ये अधिकाश भ्रमण पुरोहित लोक हितैषी एवं त्यागी प्रवृत्ति के थे। निस्सन्देह तुर्की से अफगानिस्तान तक की मरुभूमि और निर्जन स्थलियों में उस समय भी स्थान-स्थान पर गृहत्यागी श्रमण विहार करते थे। ये श्रमण संस्कृति से प्रभावित एव उसके अगभूत यहूदी समाज की भांति समाज के कल्याण के लिए सर्वस्व त्याग कर निस्पृह विचरण करते थे। मूसा से ईसा तक यही परम्परा चली। ये यहूदी और श्रमण निर्जनवास करते, अत्यन्त अल्प और मोटे वस्त्र पहनते और परिव्राजक होकर कठोर तप करते थे। स्वयं मूसा ने चालीस दिन तक सिनाई पर्वत पर भूखे-प्यासे रहकर घोर तप किया था। ईसा के जन्म से चार सौ वर्ष से भी अधिक पूर्व ऐसे श्रमण सन्यासियो के आश्रम और संघ उत्तरी अफ्रीका के भूमध्य सागर तट पर.

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