Book Title: Videsho me Jain Dharm
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 25
________________ 25 विदेशो में जैन धर्म स्वरूप का ज्ञान था जो उक्त पुस्तक के अध्याय 125 मे दिया गया है। तीर्थकर मल्लिनाथ के तीर्थकाल में मेनेस के नेतृत्व में पणिदल भारत से मिश्र गया था और उसने वहा श्रमण धर्म का प्रचार-प्रसार किया था। मेनेस का पुत्र थोथ (या तैत), महामाता अथारे, एमन, होरस और उसिरि या आसिरिस भारत (पुन्ट) से मिश्र जाकर वहा के वासी बन गये थे। मिश्र की सस्कृति और सभ्यता का प्रदाता भारत देश था। सिन्धुघाटी सभ्यता की भाति प्राचीन मिश्र में प्रारम्भिक राजवशो के समय की दोनो हाथ लटकाये देहोत्सर्ग निस्सग भाव मे खडी श्रमण मूर्तिया मिलती हैं। अध्याय 5 अमेरिका में श्रमण धर्म अमेरिका में लगभग 2000 ईसा पूर्व मे (आस्तीक-पूर्व युग में) सघपति जैन आचार्य क्वाजलकोटल के नेतृत्व में प्रणि जाति के श्रमण सघ अमेरिका पहुचे और तत्पश्चात् सैकडो वर्षों तक श्रमण अमेरिका में जाकर बसते रहे, जैसा कि प्रसिद्ध अमेरिकी इतिहासकार वोटन ने लिखा है। ये लोग मध्य एशिया से पोलीनेशिया और प्रशान्त महासागर से होकर अमेरिका पहुंचे थे तथा अन्तर्राष्ट्रीय पणि (फिनिशयन) व्यापारी थे। ये ऋग्वेद में वर्णित उन जैन पणि व्यापारियो के वशज थे जो कि भारत से मध्य एशिया मे जाकर बसे थे और उनका तत्कालीन सम्पूर्ण सभ्य जगत से व्यापार सम्बन्ध और उन देशो पर आधिपत्य था। इनका अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन और साम्राज्य था (The worldof Phoenesioss)। ये अहि और नागवशी थे तथा ये लोग ही इन क्षेत्रो का शासन-प्रबन्ध भी चलाते थे। इनसे पूर्व भी हजारो वर्षों से भारत से गये द्रविड लोगो का उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में निवास था तथा निरन्तर सम्बन्ध बना हुआ था। प्राचीन अमेरिका कला पर स्पष्ट और व्यापक श्रमण तथा मिनोअन सस्कृति का असर स्पष्टतया दृष्टिगोचर होता है। इनके तत्कालीन धार्मिक रीतिरिवाजो और आचार-विचार और संस्कृति मे तथा भारतीय श्रमण

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