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व्यापक प्रभाव पड़ा प्रतीत होता है।
अध्याय 16
विदेशों में जैन धर्म
यहूदी और जैन धर्म
प्रसिद्ध इतिहास लेखक मेजर जनरल जे जी आर. फर्लांग ने लिखा है कि अरस्तू 23 ने ईसवी सन् से 330 वर्ष पहले कहा है कि कालेसीरिया के निवासी यहूदी भारतीय तत्त्वज्ञानी थे जिनको पूर्व मे कालनी और इक्ष्वाकुवशी कहते थे। जुदिया में रहने के कारण ये यहूदी कहलाते है। ये प्राचीन यहूदी वास्तव मे भारतीय इक्ष्वाकुवंशी जैन थे जो जुदिया मे रहने के कारण यहूदी कहलाने लगे थे। इस प्रकार यहूदी धर्म का मूल श्रोत भी जैन धर्म प्रतीत होता है।
अध्याय 17
तुर्किस्तान (टर्की) में जैन धर्म
इतिहासकारों के अनुसार तुर्किस्तान मे भारतीय सभ्यता के अनेकानेक चिह्न मिले है । उत्खनन के समय 1700-1800 वर्ष पुराने हस्तलिखित ग्रन्थ मिले है जो ताडपत्र, भोजपत्र, काष्ठ, चमडे आदि पर है, प्राकृत संस्कृत आदि मे है और अधिकतर खरोष्ठी लिपि में हैं। इन ग्रन्थो को जापानी, जर्मन, फ्रासीसी और अंग्रेज लोग अपने-अपने देशो को ले गये हैं । प्राकृत भाषा के ग्रन्थ मिलने से ज्ञात होता है कि वे जैन धर्म पर ही होने चाहिए तथा इस देश मे जैन धर्म का व्यापक अस्तित्व रहा होगा।
इस्तम्बूल नगर से 570 कोस की दूरी पर स्थित तारातम्बोल नामक विशाल व्यापारिक नगर मे विक्रम की 17वीं शताब्दी तक बड़े-बड़े विशाल जैन मन्दिर, जैन पौषधशालाये, उपाश्रय, लाखो की संख्या में जैन धर्मानुयायी, चतुर्विध श्रीसंघ तथा सधाधिपति जैनाचार्य अपने शिष्यो- प्रशिष्यो के मुनिसंम्प्रदाय के साथ विद्यमान थे। आचार्य का नाम युग-प्रधान उदयप्रभ सूरि था। वहां