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विदेशों में जैन धर्म
निकट और घनिष्ट सम्बन्ध रहा है।
तक्षशिला आदि के जैन स्तूपों से पुरातत्त्ववेत्ताओं की अनभिज्ञता के कारण उन्हें बौद्ध स्तूप मानकर जैन इतिहास के साथ खिलवाड़ किया गया है । हुएन सांग आदि चीनी बौद्ध यात्रियों ने या तो अज्ञानता वंश या दृष्टिराग से जहाँ भी कोई स्तूप देखा उसे जैन स्तूप होते हुए भी, निरीक्षण किए बिना क्षट से अशोक स्तूप लिख दिया गया।
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सम्राट सम्प्रति ने तक्षशिला में अपने पिता कुणाल के लिए एक जैन मन्दिर का निर्माण भी कराया था जो आज कुणाल स्तूप के नाम से प्रसिद्ध है। इसी पर से तक्षशिला का नाम कुणालदेश के नाम से प्रसिद्ध हुआ था । कुणाल तक्षशिला में निवास करता था, इसलिए उसकी धर्मोपासना के लिए सम्राट सम्प्रति ने इस मन्दिर का निर्माण कराया था। कुणाल के स्थान पर पुराणों में "सुयश" नाम मिलता है। बौद्धों के दिव्यावदान, जैनों के परिशिष्ट पर्व, विचार श्रेणी तथा तीर्थकल्प से इन तथ्यों की पुष्टि होती है। वायुपुराण तथा मत्स्य पुराण से भी इन बातों की पुष्टि होती है। 77
इतिहासज्ञों का मत है कि सम्राट सम्प्रति का राज्य भारत, योन, कम्बोज, गांधार, अफगानिस्तान, वाह्लीक, तुर्कीस्तान, ईरान, लंका, बलख बुखारा, काशगर, ईराक, नेपाल तिब्बत, भूटान, अरब, अफ्रीका, ग्रीस. एथेन्स, साइरीन, कोरीथ, बेबीलियन, ग्रीस की सरहद तथा एशिया माइनर तक था। अपने राज्य के सब देशों में उसने अपने समय में अनेक जैन मन्दिर बनवाये थे । तीर्थकल्प में भी लिखा है कि परमार्हत सम्प्रति ने अनार्य देशों में जैन विहार (जैन मन्दिर), दानशालायें, बावड़ियां आदि लाखों की संख्या में बनवाये थे 78 । कई विद्वानों का मत है कि मौर्य सम्राट सम्प्रति की रोकथाम के लिए ही चीन की विश्व प्रसिद्ध दीवार (विश्व की आश्चर्य) बनाई गई थी जो आज भी विद्यमान है।
• गांधार से लेकर सिन्धु सौवीर तक तथा कुरुक्षेत्र तक सारे पंजाब जनपद में अति प्राचीन काल से जैन धर्म का व्यापक प्रसार चला आ रहा था । सम्राट सम्प्रति के समय में आर्य सुहस्ति, उनके शिष्य आर्य सुस्थित, तथा लाखों की संख्या में जैन साधु-साध्वियां और श्रावक-श्राविकायें पंजाब (पाकिस्तान) के जनपद में सर्वत्र मंगल विहार और विचरण करते थे ।
वस्तुतः सम्राट संम्प्रति ने विशाल सेना. सुसज्जित करके एक-एक