Book Title: Videsho me Jain Dharm
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 39
________________ विदेशों में जैन धर्म 39 जून, 1967 को नई दिल्ली में एक पत्रकार सम्मेलन में कहा था कि भारत और मध्य एशिया के बीच सम्बन्ध लगभग एक लाख वर्ष पुराने हैं अर्थात् पाषाण काल से हैं तथा यह स्वाभाविक है कि जैन धर्म मध्य एशिया में फैला हुआ था 14 | प्रसिद्ध फ्रांसीसी इतिहासवेत्ता श्री जे.ए दुबै ने लिखा है कि "एक समय था जब जैन धर्म का कश्यप सागर से लेकर कामचटका की खाड़ी तक खूब प्रचार-प्रसार हुआ था। न केवल यह बल्कि जैन धर्म के अनुयायी यूरोप और अफ्रीका तक में विद्यमान थे" 115 इसी प्रकार, मेजर जनरल जे जी आर फरलॉग ने लिखा है कि "आक्सियाना, कैस्पिया, बल्ख और समरकन्द नगर जैन धर्म के आरम्भिक केन्द्र थे" 116 सीरिया के अमुर्स प्रान्त मे एक नगर का नाम रेशेफ था जिसका उल्लेख मर्रिजातीय नरेश जिम्रेलिन (2730-2700 ईसा पूर्व) के लेख में हुआ है। 136 सोवियत आर्मीनिया में लेशबनी नामक प्राचीन नगर है। प्रोफेसर एम एस रामस्वामी आयगर के अनुसार, जैन मुनि-संत ग्रीस, रोम नार्वे मे भी विहार करते थे। 37 श्री जान लिंगटन् आर्किटेक्ट एव लेखक, नार्वे के अनुसार 138 नार्वे म्यूजियम में ऋषभदेव की मूर्तियां हैं जिनके कधो पर केश है, वे नग्न है और खड्गासन है। नार्वे के सिक्कों पर जैन तीर्थकरों के चिह्न मिलते हैं। तर्जिकिस्तन में सराज्म के पुरातात्विक उत्खनन में पंचमार्क सिक्को तथा सीलो पर नग्न मुद्राये बनी है जोकि सिन्धु घाटी सभ्यता के सदृश हैं। आस्ट्रिया के बुडापोस्ट नगर मे ऋषभ की मूर्ति एवं भगवान महावीर की मूर्ति भूगर्भ से मिली है। 138 ऋषभदेव ने बहली (बैक्ट्रिया, बलख ), अडबइल्ला (अटक प्रदेश), यवन (यूनान). सुवर्ण भूमि (सुमात्रा), पण्हव (प्राचीन पार्थिया वर्तमान ईराक का एक भाग) आदि देशो में विहार किया था। भगवान अरिष्टनेमि दक्षिणापथ के मलय देश में गये थे। जब द्वारिका दहन हुआ था तक भगवान अरिष्टनेमि पल्हव नामक अनार्य देश में थे। 17 कर्नल टाड ने अपने राजस्थान" नामक प्रसिद्ध अंग्रेजी ग्रंथ में लिखा है कि प्राचीन काल में चार बुद्ध या मेधावी महापुरुष हुए हैं। इनमें पहले आदिनाथ या ऋषभदेव थे। दूसरे नेमीनाथ थे। ये नेमिनाथ ही स्केण्डिनेविया

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