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विदेशों में जैन धर्म
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निवासियों के प्रथम ओडिन तथा चीनियो के प्रथम फो नामक देवता थे। 18
भगवान पार्श्वनाथ ने कुरु, कौशल, काशी, सुम्ह, अवन्ती, पुण्ड्र, मालव, अंग, वंग, कलिंग, पांचाल, विदर्भ, मगध, मद्र, दशार्ण, सौराष्ट्र, कर्णाटक, कोंकण, मेवाड, लाट, द्रविड, कश्मीर, कच्छ, शाक, पल्लव, आभीर आदि देशों मे विहार किया था। दक्षिण में कर्णाटक, कोंकण, पल्लव आदि उस समय अनार्य देश माने जाते थे। शाक भी अनार्य प्रदेश था । शाक्य भूमि नेपाल की उपत्यका मे है। वहा भगवान पार्श्व के अनुयायी थे। भगवान बुद्ध का चाचा स्वय पार्श्वनाथ का श्रावक था । "
वत्स,
भगवान महावीर वज्रभूमि, सुम्हभूमि, दृढभूमि आदि अनेक अनार्य प्रदेशो मे गये थे। वे बगाल की पूर्वी सीमा तक गये थे तथा ईरान सीमा पर सिन्धु सौवीर भी गये थे और वहा के राजा उदयन को जैन धर्म मे दीक्षित किया था | 20
ईसा से पूर्व ईराक, शाम और फिलिस्तीन मे जैन मुनि और बौद्ध भिक्षु हजारों की संख्या मे चारो और फैले हुये थे। पश्चिमी एशिया, मिश्र, यूनान और इथोपिया के पहाडो और जगलों मे उन दिनो अगणित श्रमण साधु रहते थे जो अपने त्याग और अपनी विद्या के लिए प्रसिद्ध थे । ये साधु वस्त्रो तक का परित्याग किये हुए थे। 21 वान क्रेमर के अनुसार, मध्य पूर्व मे प्रचलित "समानिया" सम्प्रदाय श्रमण शब्द का अपभ्रश है। यूनानी लेखक मिश्र, एबीसीनिया और इथ्यूपिया मे दिगम्बर मुनियों का अस्तित्व बताते हैं ।
आर्द्र देश का राजकुमार आर्द्रक भगवान महावीर के सघ में प्रव्रजित हुआ था । अरबिस्तान के दक्षिण मे "अदन" बन्दरगाह के क्षेत्र को आर्द्र देश कहा जाता था। कुछ विद्वान इटली के एड्रियाटिक समुद्र के किनारे वाले क्षेत्र को आर्द्र मानते है। प्रो बील ( 1885 एडी.) और सर हेनरी रालिसन के अनुसार, मध्य एशिया का बल्खनगर जैन संस्कृति का केन्द्र ...। मध्य एशिया के कैस्पियाना, अमन, समरकन्द, बल्ख आदि नगरों मे जैन धर्म प्रचलित था। मौर्य सम्राट सम्प्रति ने अरब और ईरान में जैन संस्कृति के केन्द्र स्थापित किये थे । जेम्स फर्ग्यूसन ने अपनी विश्वविश्रुत पुस्तक "विश्व की दृष्टि में में (पृष्ठ 26 से 52 ) लिखा है कि ऋषभ की परम्परा अरब मे थी और अरब क्षेत्र मे स्थित पोदनपुर जैनधर्म का गढ था 1135