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विदेशों में जैन धर्म
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वह श्रमण धर्म का अनुयायी था ।
तीर्थयात्रा में उसने मोहनजोदडो (दिलमन-भारत) में जैन आचार्य उत्तनापिष्टिम के दर्शन किए थे जिन्होने उसे मुक्तिमार्ग (अहिंसा धर्म) का उपदेश दिया था। सुमेर जाति में उत्पन्न बाबुल के खिल्दियन सम्राट नेबुचेदनजर ( प्रथम ) ने रेवानगर (काठियावाड) के अधिपति यदुराज की भूमि द्वारका में आकर रैवताचल (गिरनार) के स्वामी नेमीनाथ की भक्ति की थी और उनकी सेवा मे दानपत्र अर्पित किया था । दानपत्र पर उक्त पश्चिमी एशियायी नरेश की मुद्रा भी अंकित है और उसका काल लगभग 1140 ईसा पूर्व है | 8
प्रभासपत्तन से भूमि उत्खनन स एक ताम्रपत्र प्राप्त हुआ है जिसमें बेबीलन (मध्य एशिया) के राजा नेबुचन्द्र नेंजर (प्रथम) के द्वारा सौराष्ट्र (गुजरात) के गिरिनार पर्वत पर स्थित नेमिनाथ के उक्त मन्दिर के जीर्णोद्धार का उल्लेख है। बेबीलन के राजा नेषु चन्द्र नेजर (प्रथम) का समय 1140 ईसापूर्व है जो पार्श्वनाथ के पहले का समय हुआ । नेबुचन्द्र नेजर (द्वितीय) का समय 604-561 ईसा पूर्व है जो महावीर के केवलज्ञान से पहले का समय है। नेबुचन्द्र नेजर ने अपने देश बेबीलन की उस आय को. जो नाविको के द्वारा कर से प्राप्त होती थी, जूनागढ के गिरनार पर्वत पर स्थित अरिष्टनेमि की पूजा के लिए अर्पित किया था। इसस स्पष्ट है कि पार्श्वनाथ से भी पहले यह मन्दिर विद्यमान था तथा बेबीलन के राजा
बुचद्र नेजर ने नेमीनाथ के गिरिनार स्थित जैन मन्दिर के नियमित पूजा प्रक्षाल के लिए राजकीय दान दिया था। इससे यह भी ज्ञात होता है कि बेबीलन (मध्य एशिया) के राजपरिवार में भी जैन धर्म के प्रति श्रद्धा थी और मध्य एशिया के बेबीलन आदि महानगरों में जैन धर्म का व्यापक प्रसार था। यह बात नेमीनाथ को भी ऐतिहासिक सिद्ध करती है। 52
महान पणि नेता मेनेस के नेतृत्व मे कुशल नाविको और शिल्पियों के साथ, धार्मिक नेताओ का एक पणि दल 4000 ईसा पूर्व के मध्य मे मिश्र गया था। वह वहां का पहला फराओ (फारवा) शासक बना और उसने मिश्र में मैम्फिस महानगर की नीव डाली थी । मनेस ने स्वय स्वीकार किया था कि वह भारत का पणि था । मिश्र की प्रसिद्ध पुस्तक Manifestaion of Life मे श्रमण धर्म के सिद्धात निबद्ध हैं। मिश्रियो को आत्मा-अनात्मा के