________________
30
विदेशों में जैन धर्म के जैन तीर्थों और नगरों की भौगोलिक स्थिति से सम्बन्धित रहा होगा, जिसे किन्हीं जैन विद्वानों ने तारातम्बोल में रहते हुए लिखा होगा। इस जैन शास्त्र के उपलब्ध होने पर इस भूभाग में भारतीयों के प्रभाव से सम्बन्धित कई रहस्यों का उदघाटन संभव है।
हाल ही में ताजिकिस्तान के पुरातत्त्वज्ञों ने रूस में जेराब्सान नदी के तट पर सराज्म में 6000 वर्ष पुराने व्यापक नगर सभ्यता केन्द्र का उत्खनन किया है। यह सभ्यता मोहनजोदड़ों और हड़प्पा की समकालीन विधाधर सभ्यता प्रतीत होती है जो रूस, सुमेरिया और बाबुल से लेकर समस्त उत्तरी और मध्य भारत तक सम्पूर्ण क्षेत्र मे फैली हुई थी। यहां के निवासी ताम्र का उत्खनन करते थे तथा अनाज की खेती करते थे और पत्थर के औजारों से मकान बनाकर रहते थे। उनकी अनाज रखने की खत्तिया थी। उनकी सभ्यता ताम्रयुगीन-कृषियुगीन सभ्यता थी। वे शुद्ध शाकाहारी थे जबकि उनके चारो और शिकारी जातियो का निवास था। सराज्म हडप्पा संस्कृति की समकालीन श्रमण संस्कृति का केन्द्र प्रतीत होता है तथा यह सस्कृति तत्कालीन बलूचिस्तान की सस्कृति से मिलती-जुलती है। उनका मैसोपोटामिया से लेकर सिन्धु घाटी सभ्यता तक से घनिष्ठ सम्बन्ध प्रतीत होता है। ससार के पुरातत्त्वविज्ञ इसका आगे अध्ययन कर रहे हैं।
बेबीलोन से लेकर यूरोप तक जैन धर्म का व्यापक प्रभाव था। मध्य यूरोप, आस्ट्रिया और हंगरी में आये भूकम्प के कारण भूमि में एकाएक हुए परिवर्तनो से बुडापेस्ट नगर में एक बगीचे में भूमि से महावीर स्वामी की एक मूर्ति निकली थी। वहा जैन लोगो की अच्छी बस्तियां थी। सातवीं शती ईसा पूर्व में हुए यूनान के प्रसिद्ध मनीषी जैन साधक और जैन सन्यासी थे। यूरोप और बेबीलोन दोनों का सम्बन्ध इयावाणी ऋष्यश्रृंग के उपाख्यान से भी सिद्ध होता है। मौलाना सुलेमान नदबी ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ "भारत और अरब के सम्बन्ध में लिखा है कि "संसार में पहले दो ही धर्म थे - एक समनियन और दूसरा कैल्डियन। समनियन लोग पूर्व के देशों में थे। खुरासान वाले इनको "शमनान" और "शमन" कहते है। ह्वेनसांग ने अपने यात्रा प्रसंग में "श्रमणेरस' का उल्लेख किया है। 12