Book Title: Videsho me Jain Dharm
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ विदेशों में जैन धर्म 35. जिन बिम्ब चौथे काल (चौथे आरे) के अन्त समय के है। कुछ प्रतिमाओं के हाथ ऊपर उठे हुए हैं जो उपदेश मुद्रा में हैं। मुंगार देश में जैन धर्मः यात्री विवरण के अनुसार, यहां बाघानारे जाति के जैनी हैं। इस नगर में जैनियो के 8000 घर हैं तथा 2000 बहुत सुन्दर जैन मन्दिर हैं। मन्दिरों के गुंबज कहीं तीन, कहीं पांच और । कहीं सात हैं। एक-एक मन्दिर पर सौ-सौ. दो-दो सौ कलश विराजमान हैं। इन मन्दिरो में अरिहंत की माता (ऋषभदेव की माता) मरुदेवी के बिम्ब विराजते हैं। इन मन्दिरों में रत्नों और पुष्पों के वरसने के चिहन छतों में अंकित हैं। तीर्थकर के अपनी माता के गर्भ में आने के स्वप्नों के चित्र भी अकित हो रहे हैं। फूलों की शय्या पर माता लेट रही है। ये लोग गर्भावस्था (च्यवन कल्याणक) की पूजा करते हैं। अध्याय 10 तिब्बत और जैन धर्म यात्रा विवरण के अनुसार (एकल नगर में) तिब्बत में जैनी राजा राज्य करता है। यहां के जैनी मावरे जाति के हैं। एकल नगर में एक नदी के किनारे 20,000 जैन मन्दिर हैं। यहां सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ के जन्म, दीक्षा और निर्वाण के उत्सव के अवसरों पर बड़ी दूर-दूर से यात्री तीर्थगात्रा करने के लिए आते हैं। इस नदी के किनारे संगमरमर पर सुनहरे काम वाले पत्थरों का मेरुपर्वत बना हुआ है। यहा जन्म कल्याणक पर मेले लगते हैं। तिब्बत में ही सोहना जाति के जैन भी हैं। तिब्बत में ही 80 कोस की दूरी पर दक्षिण दिशा में खिलवन नगर है। यहां के जैनी तीर्थकर के दीक्षा समय के पूजक हैं। यहां नगर में 104 शिखरबन्द जैन मन्दिर हैं। ये सब मन्दिर रत्नजटित और मनोज्ञ हैं। यहां के वनों में तीस हजार जैन मन्दिर हैं। उनमें नन्दीश्वर द्वीप की रचना वाले 52 चैत्यालय भी हैं। . दक्षिण तिब्बत में हनुवर देश में दस-दस. पन्द्रह-पन्द्रह कोस पर जैनों के अनेक नगर हैं जिनमें बहुत से जैन मन्दिर हैं। हनुवर देश के

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113