Book Title: Videsho me Jain Dharm
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 16
________________ विदेशों मे जैन धर्म अध्याय 3 सिन्ध, बलूचिस्तान, तक्षशिला, सौवीर, गान्धार आदि - पांच हजार वर्ष पूर्व इस क्षेत्र के अनेकानेक जैन मन्दिर, स्तूप, महल, गढ आदि तो काल कवलित हो गए। किन्तु शेष को धर्मान्धो और बर्बर ब्रह्मार्यो ने भारत में प्रवेश करने पर धर्मान्धतावश तथा उत्पीडनार्थ उन्हें नष्ट भ्रष्ट कर दिया। प्राचीन काल में, तृतीय सहस्राब्दि ईसा पूर्व में, बाइसवें जैन तीर्थकर अरिष्टनेमि के तीर्थ काल में, सिन्धु घाटी सभ्यता अपने चरमोत्कर्ष पर थी। तक्षशिला, कश्यपमेरु (कश्मीर). पंजौर. सिंहपुर. कुलु-कागड़ा. सिन्धु-सौवीर, गान्धार, बलूचिस्तान आदि अनेकानेक स्थान जैन संस्कृति के रूप में बडी उन्नत अवस्था में थे। जैन देव मन्दिरों और भक्तजनों के दिव्य नादों से गगन गूंज उठता था। विद्वानों, निग्रन्थो, श्रमणो और श्रमणियों के विहार-स्थल और बड़े-बड़े प्रतापी जैन राजा-महाराजाओं की और धनकुबेर श्रेष्ठियों की प्रभुता वाली पजाब की धरा सुसमृद्ध थी। पजाब के उन जैन महातीर्थो को तथा जैन-बहुल विस्तृत आबादी वाले नगरो और गावो को, जिनकी समृद्धि और आयात विश्वव्यापी वाणिज्य और व्यापार के कारण बहुत विस्तृत था, विदेशी, आततायी, धर्मान्ध, आक्रमणकारी ब्रहार्यों ने नष्टभ्रष्ट और धाराशायी कर दिया। इसीलिए उनमें से अधिकाश विकराल काल के ग्रास बन चुके है। अनेकों जैन मन्दिरों को ध्वस्त कर दिया गया, नगरों और गावों को । उजाडकर जला दिया गया तथा वहां के निवासियो को पलायन करने पर विवश किया गया। अनेक जैन मन्दिरो का हिन्दू मन्दिरों और कालान्तर मे बौद्ध मन्दिरों में बदल दिया गया। जैन मूर्तियो को आर्यधर्मियो ने अपने इष्ट देवो के रूप में बदल दिया और कालान्तर में मुसलमानों ने उन मन्दिरों को मस्जिदों के रूप में परिवर्तित कर लिया। अनेकानेक मन्दिरी स जैन मूर्तियो को उठाकर नदियों, कुओं, तालाबों आदि में फेक कर उन मन्दिरो पर अपने-अपने धर्मस्थानों के रूप में अधिकार जमा लिया गया।

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