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विदेशो मे जैन धर्म
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हज़ारों जैन मन्दिर, मूर्तिया इमारते, शिलालेख स्तूप आदि सम्पूर्ण हड़प्पा-मोहनजोदडो - कालीबंगा सराज्म परिक्षेत्र के लगभग 250 से अधिक सिन्धु सभ्यता केन्द्रों में भूमि के नीचे दबे पडे हैं और शोध खोज एवं खुदाई की प्रतीक्षा कर रहे है।
कामरूप प्रदेश (बंगलादेश, बिहार, उडीसा आदि), कश्मीर, भूटान, नेपाल, बरमा, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बिलोचिस्तान, काबुल, चीन, ईरान, ईराक शकस्तान, तिब्बत, तुर्कीस्तान, लंका, सुमेरिया, बेबीलन आदि देशों में, प्राचीन काल मे सर्वत्र जैन धर्म का बोलबाला था। सातवी शती (विक्रम) में ही उन देशो मे जैनो की संख्या बहुत अधिक थी । 16वी - 17वी शताब्दी (विक्रम) मे भी तुर्किस्तान, चीन आदि देशो मे जैन यात्री भारत से तीर्थ यात्रा करने के लिए या व्यापार के लिए जाते थे, जिनका प्रभूत वर्णन प्राप्त हुआ है। ये सब स्थान तब से विदेशियो की बर्बरता और धर्मान्धता के शिकार हो चुके हैं।
पूर्वी भारत और मागध क्षेत्र (कामरूप, बगाल, बिहार, उडीसा आदि) मे हजारो वर्षों से जैन धर्म और मागध विद्या का प्रचार, प्रभाव और प्रसार रहा है। इस सम्पूर्ण क्षेत्र का आदि धर्म (मूल धर्म) भी जैन धर्म ही रहा है।
उस युग में, पूर्वी भारत में मुख्यता इक्ष्वाकुवंशियो का निवास था जिनके वंशज दक्षिण पूर्व में मल्लिका, शाक्य, लिच्छिवि, काशी, कोशल, विदेह, मालव और अग थे। इनके अतिरिक्त भारत के मध्य क्षेत्र में कोलों. भीलों और गोंडों आदि का निवास था। दक्षिण भारत में प्रोटो-आस्ट्रेलाइड लोगो का निवास था। ये सभी जातियां भारत की उस युग की महान् ऐतिहासिक व्रात्य प्रजाति का ही भाग थीं । सिन्धुघाटी सभ्यता तीसरे तीर्थंकर संभवनाथ के तीर्थकाल में 6000 ईसा पूर्व में नर्मदा नदी के कांठे से सिन्धु नदी की घाटी और उसके आगे फैली। उनकी उस युग की सभ्यता और संस्कृति वस्तुतः वही सस्कृति थी जिसे हम आज सिन्धु घाटी सभ्यता, हडप्पा और मोहनजोदडो संस्कृति के नाम से जानते हैं और जो आगे चलकर संसार के सभी महाद्वीपों के लगभग सभी देशो में फैली और भारत मे उत्तर से दक्षिण तक तथा पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई थी और जो अब तक भारत के हड़प्पा (हर्यूपिया). मोहनजोदड़ो (दुर्योग, नन्दूर या मकरदेश ). कालीबंगा आदि लगभग 200 विभिन्न स्थलों की और मध्य