Book Title: Vicharamurtsar Sangraha
Author(s): Kulmandansuri
Publisher: Fakirchand Maganlal Badami

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Page 10
________________ ShrMahavaJain.rachanaKendra Acharya ShakailassagarsunGyanmandir वहारः श्रीविचारा-चितेन तपसा यां शुद्धिं निर्दिशन्ति गीतार्थाः तजीतमुच्यते, जीतवृत्त्यनुसारि जीतमिति, कोऽर्थः १, जं बहहिं गीयत्धेहिं आइण्णा मृतसंग्रहे| जीतं, उचितमाचिनमित्यनान्तरं व्यव० ५० पीठे, जीतं नाम प्रभूतानेकगीतार्थकृता मर्यादा, तत्प्रतिपादको ग्रन्थोऽप्युप चारात जीतम् । व्यव० ० पीठे. जं जस्म पच्छिनं आयरियपरंपराइ अविरुद्धं । जोगा य बहुविहीया एसो खलु जीयकप्पो उ |१|| 'जोगा य बहुविहा यति जहा नाइलकुलथयाणं आयाराओ आढवित्ता जाब दसाओ ताव नस्थि अंबिलं, निबिगिइएणं वापनि, वियाहाए आयरियाणुण्णानं काउम्मगं काउं परि जति विगई. तहा कप्पववहाराणं के सिंचि अणागाई, एवं सरपननीएहावि। व्य० भाग्यचूर्णिपीठे। वत्तणुवत्तपत्तो बहुसो अणुवत्तिओ महाणेणं । एसो य जीयकप्पो पंचमओ होह वबड़ारो ॥६८२|| वनो नामं इकसि, अणुवत्तो जो पुणो विडयवारा । तइयवारि पब्वत्तो परिग्गहिओ महाणेणं ॥८॥ धीरपुरिसपन्नतो पंचमओ आगमी वियपसरथो। पियधम्मवजभीरू पुरिसजायाणुविच्चा वा ॥१॥धीरपुरिसा तिस्थपरा तेहिं पमनोति, विउणो-चउद्दसपुग्विणो तहि कालं पडुच्च पसंसिओ-अभिनंदिशो पियधम्मादीहिं आचिनो नेण पञ्चओ भवइ-सत्यमेतदिति । बहुओ बहुस्सुएहिं जो वत्तो न य निवारिओ होइ । वत्तणुवत्तपमाणं जीएण कयं हवद एयं ॥१॥ यद्यनृतं स्यात् बहुसो बहुस्सुएहिं वारिओ हुँतो, जम्हा न निवारिओ तम्हा सदहियब्वं सत्यमेतदिति ग्यव० भा०चू० उ.शा जं जीयं सावजं न तेण जीएण होड़ ववहारो। जंजीयमसावज नेण उ जीएण ववहारो |||| व्यव० भा० उ.१० । इत्युपदिष्टासावयरूपजीतपर्यंतपंचव्यवहारम् ९॥ सत्राणि ह्यमनि विचित्राभिप्रायकृतानीति सम्यक्संप्रदायादवसातव्यानि, संप्रदायश्च यथोक्तस्वरूप इति न काचिदनुपपत्तिः, न च सवामिपायमज्ञात्वाऽनुपपत्तिरुद्भावनीया, महाशातनायोगतो महानर्थप्रसक्ते, सूत्रकृतो हि भगवन्तो महीयांसः प्रमाणीकताब AAAAAAAAAAAAAAAAAAAZAR &BAKARKKAR AAAAAAAAAAI ॥८॥ For Private And Personal Use Only

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