Book Title: Vicharamurtsar Sangraha
Author(s): Kulmandansuri
Publisher: Fakirchand Maganlal Badami
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श्रीविनागमृतसंग्रहे ॥३८॥
AAAYATATATAAAAAAAA.
| असिवं भवे, आदिग्रहणतो गयट्ठादी, वासं या न मुख आरद्धं वासिउ, एवमाएइहि कारणेहि यदि अच्छंनि गो आणादिया दोसा,
४ पर्युपणा
। विचार: अह न अच्छति तो गिहरथा भणंति-एते सबष्णुपुत्तगान किंचि जाणंति, मुमावायं च भासंति, ठिया मोत्ति भणिता जेण निग्गना,वा लोगो वा भणिज-साथ इन्थ परिसार ठिता अवसं वामं भविम्मति, ततो धचं विकिणाति, लोगो घगदीणि छादति, हलादि-15 कर्माणि वा संपवितंति, अभिग्गहिते गिहिनाए य आरओ कए जम्हा एबमाइया अहिगरणदोसा नम्हा अभिवड़ियवरिसे पीमतिराते गए, गिहिनातं कम्ति, तिमु नंदयसिसु सबीस तिगते पास गने गिहिनानं कति" निजी०१० पु.११ पत्र २१७, किच पर्युषणाशरद: यामान्यतो पथों हयते, कापि २ वर्षाकालाय थानार्थः, कापि २ च प्रतिक्रमणादिविषयप पुषणापर्वार्थ: तथाहि-आपातपणिमापर्यषणामादौ कन्या पंचकपरिहाण्या भाद्रपदामावास्यामवधीत्य चन्द्र संवन्मग्पयनभिगृहीतगृह ग्याज्ञाताय. स्थानरूपं पर्युषणादशकं भवति, अमिवद्धितहये तु श्रावणामावास्यामवधीकृत्य नाट पर्यपणाचतुष्कं स्यात् . तथा चन्द्र संवत्सरनाये भाद्रपद शुद्ध चम्यां अभिवनियोस्तु श्रावणद्रनम्यां, अनेन इह अव्यवस्था (अम्ह ला इन्थ ठिया) इत्यभिगृहीतं गृहस्थजान यावस्थानं क्रियते, एप पर्यपणाप्रकारंप कस्पदशानिशीथणिषु मचिम्नग्मुपदमिना अभिगृहीतानभिगृहानगृहितानाजानवांकालावग्याने पर्युषणाकल्पकथनपूर्वकवकल्पसामाचार्गध्यवधापनदिगिने य युपणाशनदो हठयने. नतु प्रतिकमणादिविषयापपणापर्याधः, तथा ED 'गच्छो उ इग्नि मासे पकने पक्खे इमं परिहावेह । भनटुं समाय बंदणलावं नउ परणं ।।१।। एवं अणुषममनं गाडी दुनि मासे सारखेति, हम पूण गच्छो पक्षे पक्से परिह येति, अणवसमनस्स पवे गने गच्छो गेण सभ भन₹न करेति, चिसियपक्ष ग री ३८।। समाय नेण गर्ग न करेंति, तनियपकने गने नम्स बंदणं नवगति, चाउथपको गर्न आलायपि नेण ममं परिजनि ।। जापनि
AASHARAMAAAAAAAMADAM
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