Book Title: Vicharamurtsar Sangraha
Author(s): Kulmandansuri
Publisher: Fakirchand Maganlal Badami
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ShrMahavaJain.rachanaKendra
Acharya ShakailassagarsunGyanmandir
पर्युषणाविचारः
श्रीविचारा-IFI
तिम्रो होहिति, तो न पज्जुवासिताणि चेतियाणि साहुणो य भविस्सतित्तिकाउं तो छडीए पोसवणा भवतु, आयरिएण भणितमृतसंग्रहे | ॥३४॥
न वदृति अतिकामेडं, रन्ना भणितं-तो चउत्थीए भवतु, आयरिएण भणियं-एवं होउत्ति चउत्थीए कता पन्जोमवणा, एवं चउस्थीवि जाया कारणिया" पयु० चू० पत्र ३२शन चैकस्मिन्नेव व तस्मिन् कारणिकी चतुर्थी प्रवर्तिताऽभूत् , किन्तु निशीधचूर्णिकारस्य तदनुभाबिसर्वबहुश्रुतानां चापरव्युदासेन सैव चतुर्थी आचरणीयत्वेन संमता, तथा च "आसाहपुण्णिमाए पविट्ठा पडिवयाओ आरब्भ पंचदिणा संथारगतणडगलछालमादियं गिप्हति, तम्मि चेव पणगे राईए पजोसवणाकप्पं कहिति, ताहे सावणबहुलपंचमीए पजोसवंति, खित्ताभावे कारण पणगे संखुड़े दसमीए पञ्जोमवंति, एवं पन्नरसीए, एवं पणगवुडी ताव कजति जाव सबीसतिमासो पुनो, सो य सवीसतिमासो भवयसुद्धपंचमीए पुजद, अह आसाढसुद्वदसमीए वासाखिनं पविट्ठा अहवा जन्थ आसाढमासकप्पो कतो तं वासपाउग्गं खितं अन्नं च नन्धि वासपाउम्गं ताहे तत्थेव पन्जोमविति, वासं च गाई अणुवरय आवृत्तं ताहे तत्थेव पजोसविति, एकारसीउ आढबेउं डगलादियं गिण्हंति पज्जोसवणाकप्पं च कहिंति, ताहे आसाद पुणिमाए पज्जोसविंति, | एस उस्सम्गो, सेसकालं पजोसंविताणं सब्बो अववादो, अववादेऽपि सति सवीसइरातिमामाउ अइकमेडं न वदृति, सवीसतिराए मासे पु) जदि वासखित्तं न लभति तो रुक्रवहिडेवि पोसवेयव्वं, तं च पुप्पिणमाए पंचमीए दसमीए एवमादिएसु पब्बेसु पओसवेयव्वं, नो अपव्वेमु, सीसो पुच्छति-इदाणिं कहं च उत्थीए अपव्वे पज्जोसविञ्जति ?, आयरिओ भणति-कारणिया चउत्थी अअकालगायरिएण पबत्तिया, कहं ?, भष्णते कारणं, कालगायरिओ विहरतो उज्जेणिं गतो, तत्थ वासावासं ठितो, इत्यादि, |निग्गता विहरता पतिट्ठाणनगरंतेण पट्टिता, पतिट्ठाणसमणसंघस्स य अअकालगेहिं संदिटुं-जावऽहं आगच्छामि ताव तुम्भेहिं
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॥३४॥
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