Book Title: Vicharamurtsar Sangraha
Author(s): Kulmandansuri
Publisher: Fakirchand Maganlal Badami
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ShrMahavaJain.rachanaKendra
Acharyn. ShekailassagarsunGyanmandir
श्रीविचारामृतसंग्रहे ॥१७॥
| जिनवचने |संघगरीय
RAAMAAAAAAAAAAEERAB37
गणो होइ ॥१॥ सब्बोऽपि नाणदंसणचरणगुणविभूसियाण समणाणं । समुदाओ पुण संघो गुणसमुदाउत्ति काउणं ॥२॥" भग शत ८ उ०८, सनबी, इत्यादिवचनैराचार्यपरंपरासंप्रदायाधप्रामाण्यवादिनो जिनप्रवचनप्रत्यनीकत्वं साक्षादेवोक्तं दृश्यते इति सूत्रलक्षणोपेतसूत्रार्थचूर्णिवृत्तिप्रकरणसंप्रदायादिप्रामाण्यसुप्रतिष्ठपीठबंधम् १३ ॥
गरीयस्तरेभ्योऽपि श्रीसंघस्य निग्रहानुग्रहसमर्थतया च गुरुतमत्वं दृश्यते, तथा हि-तमि य काले बारसवारिसिओ दुकालो जातो, संजताइओ तओ य समुद्दतीरे अच्छित्ता पुणरवि पाडलिपुत्ते मिलिया, अण्णस्स उद्देसो अण्णस्स खंडं एवं संघातिताणि संघातंतेहिं इकारस अंगाणि, दिहिवाओ नस्थि, णेमालबत्तणीए य भद्दबाहू अच्छंति चोद्दसपुची, तेसिं संघेण संघाडओ पत्थविओ, दिहिवायं वाएहत्ति, गंतूण निवेइयं संघकजं, ते भणंति-दुक्कालणिमित्तं महापाणं न पविट्ठोमि, इदाणि पविट्ठो, तो ण जाइ वायणं दाउं, पडिणियत्तेहिं संघस्स अक्खायं, तेहि अण्णो संघाडओ विसजिओ, जो संघस्स आणं वतिकमति तस्स को दंडो?,ते गया, कहियं, भण-उग्घाडिजा, ते भणंति-ता खाई उग्घाडि जह, भणति-मा उग्घाडेह, पेसेह मेहावी, सच पडिपुच्छाओ देमि, मिक्खायरियाए आगओ १ कालवेलाए २ सण्णाए आगओ ३ वेयालिए ४ आवस्सए उ तिषिण ७. महापाणं किर जया अइगओ भवति तदा उप्पने कब्जे अंतोमुहुत्तेण चोइस पुवाणि अवगाहति" आव० वृत्तौ योगसंग्रहेषु इति, गुरुतरेभ्योऽपि दृश्यमानश्रीसंघगुरुतमत्वं जिनप्रवचनं १४ ।। जिनप्रवचनखरूपविचार:१॥
ननु चतुर्दश्यां पाक्षिकं कस्मात् क्रियते ?, उच्यते, यत् चतुर्दश्यां पाक्षिके सति नाम तत्कृत्यानि चागमे दृश्यन्ते, न पञ्चदश्यामिति, तथाहि-विजाणं परिवाडी पव्वे पच्चे य दिति आयरिया । मासद्धमासियाणं पव्वं पुण होति मज्झं तु ॥१॥
TAKAKKARKKARARKARNMEAL
॥१७॥
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