Book Title: Vicharamurtsar Sangraha Author(s): Kulmandansuri Publisher: Fakirchand Maganlal Badami View full book textPage 8
________________ ShrMahavaJain.rachanaKendra Acharyn. ShekailassagarsunGyanmandir श्रीविचारा- मृतसंग्रहे KAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA शेषनैगमादिनयचतुरनुयोगव्याख्याक्षमम् ४ । तथा ओघसामाचायां पंचमहब्बयजुत्तो अणलस माणपरिवञ्जियमई य । सं- रामाटिनयचतानयोगव्याख्याक्षमम ४ाता साधृद्देशवत् अनष्टार्थ |विग्गनिअरडी किइकम्मको हवइ साहू ॥१॥ आव० पदविभागसामाचार्या-नाणे दंसण चरणे तवे य विरिए य भावमायारो।Ed | अट्ठहट्ठदुवालस विरियमहाणी उ जा तेसि ॥१॥ निशी० पीठे। पंचसमियस्स मुणिणो आसज विराहणा जइ हविज्जा । रीयं| तस्स गुणवओ सुब्यत्तमबंधओ सो उ ॥शा नि० पीठे। दशविधसामाचार्या-जस्स य इच्छाकारो मिच्छाकारो य परिचिया दोऽवि। तइओ य तहकारो न दुल्लहा सुग्गई तस्स ॥१॥ एवं सामायारिं झुंजता चरणकरणमाउत्ता। साहू खवंति कम अणेगभवसंचियमणंतं ॥२॥ आवश्यके, इत्यादि बहुस्थानेषु साधोरेवाभिधानेऽपि साध्व्यादयोऽपि ज्ञेयाः, तेषामपि तत्राधिकारिखस्यागमे प्रसि-1 |दुत्वात् इति, त्रिविधसामाचायों साधूद्देशेन भणितबहुसूत्रमिति ५। तथा 'नटुंमि उ सुत्र्तमी अत्थंमि अणष्टि ताहि सो कुणइ। लोगणुओगं च तहा पढमणुओगं च दोऽवेए ।।१॥ बहुहा निमित्त | तहियं पढमणुओगे य हुँति चरियाई । जिणचकिदसाराणं पुन्वभवाई निबद्धवाई । २।। ते काऊणं तो सो पाडलिपुने उबडिओ संघं। | बेई कयं मि किंची अणुग्गहट्ठाइ तं सुणह ।।३।। तो संघेण निसंतं सोऊण य से पडिच्छितं तं तु । तो तं पतिद्वितंतू नगरमी कुसुम-15 नामंमि ॥ ४॥ एमादीणं करणं गहण निग्जूहणा पकप्पो य। संगहणीण य करणं अप्पाहाराण उ पकप्पो ॥५।। पंचकल्पे, इति नष्टसूत्रमनष्टार्थ ६॥ तथा 'बद्धमबद्धं तु सुयं बद्धं तु दुवालसंग निदिई । तधिवरीयमबद्धं निसीहमनिसीह बद्धं तु ॥१॥ एवं बद्धमबद्धं आएसाणं हवंति ॥६॥ पंचसया। जह एगा मरुदेवा अचंतं थावरा सिद्धा ॥२।। सामायिकनियु०१ तथा 'सुयकरणं दुविहं-लोइयं च लोउत्तरियं च, INEMAMAKANKAARAAAAAAAY For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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