Book Title: Vedang Prakash
Author(s): Dayanand Sarasvati Swami
Publisher: Dayanand Sarasvati Swami

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सामासिकः॥ विभाषा ॥ २ ॥ १ ॥ ११॥ अधिकार । इसके भागे जो २ सगास कहेंगे सो २ विभाषा करके होंगे अर्थात् पक्ष में विग्रह भी रहेगा जहां २ वि॰ ऐसा संकेत करें वहां २ विकल्प जानना ।। - अपपरिबहिरञ्चवः पञ्चम्या ।। २ । १।१२ ॥ जो अप, परि, बहिस् और अञ्चु का सुबन्त के साथ समास विकल्प करके होता है वह अव्ययीभाव कहाता है । जैसे वि• अपत्रिगर्त वृष्टो देवः । अपत्रिगर्तेभ्यो वा । प्रामाहिबहियामम् । बहिर्मामात् । बहिश्शब्दयोगे पञ्चमीभावस्यैतदेव ज्ञापकम् ।। प्राङ्मर्यादाभिविध्योः ॥२ । १ । १३ ॥ __ जो मर्यादा और अभिविधि अर्थ में आङ् पञ्चम्यन्त सुबन्त के सङ्ग वि० समास को प्राप्त होता है सो समास अव्यर्याभावसंज्ञक होवे । मापाटलि पुत्रं वृष्टोदेवः । श्रा. 'पाटलि पुत्रात् । अभिविधि । आकुमारं यशः पाणिनेः । आकुमारेभ्यः ॥ लक्षणेनाभिप्रति आभिमुख्ये ॥ २ । १ । १४ ॥ जो आभिमुख्य अर्थ हो तो लक्षण अर्थात् चिह्नवाची सबन्त के साथ अभि और प्रति वि० समास को प्राप्त हों वह अव्ययीभावसंज्ञक हो । जैन ----अभ्यग्नि शलभाः पसन्ति । अग्निमभि । प्रत्यग्नि । अग्नि प्रति । श्राभिमुख्ये किम् । देशं प्रति गतः । अनुर्यत्समया ॥२।१ । १५ ॥ समया नाम समीपता । जिस के समीप को अनु कहता हो उसी लक्षणवाची सुबन्त के साथ वि० समास पावे सो अव्ययीभावसंज्ञक हो । जैसे-अनुवनमशनिर्गतः। अनुवृक्षम् । अनुरिति किम् । वनं समया । यत्समयेति किम् । वृक्षमनुविद्योतते विद्युत् । यस्य चायामः ॥२।१।१६॥ आयामो दैर्घ्यम् । जिस के लम्बेपन को अनु कहता हो उसी लक्षणवाची सुबन्त के सङ्ग वि० समास पावे सो अव्ययीभावसंज्ञक हो । अनुगङ्गं वाराणसी । अनुयमुनम्मथुरा । यमुनाऽऽयामेन मथुराऽऽयामो लक्ष्यते । आयाम इति किम् । वृक्षमनविद्योतते विद्युत् ।। तिष्ठद्गुप्रभृतीनि च ॥२।१ । १७ ॥ जो तिष्ठद्गु आदि शब्द निपातन किये हैं वे अव्ययीभावसंज्ञक हो । तिष्ठद्गु For Private and Personal Use Only

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