Book Title: Vedang Prakash
Author(s): Dayanand Sarasvati Swami
Publisher: Dayanand Sarasvati Swami

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Page 50
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सामासिकः॥ - उद्विभ्यां काकुदस्य ॥ ५। ४ । १४८ ॥ उत् भौर विपूर्वक बहुप्रीहि समासान्त जो काकुद् शब्द उस के अस्त का लोप हो । गद् गतं काकुदमस्य उकाकुत् । विकाकुत् । तालु काकुदमुच्यते ॥ पद्विभाषा ॥५। ४ । १४६ ॥ पूर्ण शब्द से परे बहुव्रीहि समासान्त जो काकुद् उस के अन्त का लोप विकल्प करके हो पूर्णकाकुत् । पूर्णकाकुदः ।। सुहृदुहदी मित्रामित्रयोः ॥ ५ । ४ । १५० ॥ . सुहृद् और दुहृद् निपातन गित्र और अमित्र अर्थों में किये हैं । शोभनं हृदयमस्य सुहृन्मित्रम् । दुष्टं हृदयमस्य दुहृमित्रः । मित्रामित्रयोरिति किम् । सुहृदयः कारुणिकः । दुहृदयश्चौरः ॥ उर प्रभृतिभ्यः कप् ॥ ५।४ । १५१ ॥ उरम् आदि शब्द जिस के अन्त में हों उस बहुव्रीहि समास से समासान्त कप् प्रत्यय हो । जैसे-व्यूढमुरोऽस्य । व्यूढोर स्कः । प्रियसर्पिष्कः । अवमुक्तोपानत्कः ॥ इनः स्त्रियाम् ॥ ५। ४ । १५२ ॥ इन् प्रत्ययान्त बहुब्रीहि समास से सगासान्त कप् प्रत्यय हो । बहवो दण्डिनोऽस्यां शालायां बहुदण्डिका शाला । बहुच्छात्रिका । बहुस्वामिका नगरी । बहुवाग्मिका सभा। स्त्रियामिति किम् । बहुदण्डी * । बहुदण्डिको वा राजा ॥ नवृतश्च ॥ ५ । ४ । १५३ ॥ नद्यन्त और ऋकारान्त बहुव्रीहि समास से कप् प्रत्यय हो । जैसे-बयः कुमार्योऽस्यां शालायां सा बहुकुगारीका शाला । बहुब्रह्मवन्धूको देशः (ऋतः ) बहवः कर्तारोऽस्य बहुकतृको यज्ञः ॥ न संज्ञायाम् ॥ ५ । ४ । १५५ ॥ ... * यहां शेषाद्विभाषा इस सूत्र से शेष अविहित समासान्त शब्दों से विकल्प करके कप् प्रत्यय हो जाता है । For Private and Personal Use Only

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