Book Title: Vedang Prakash
Author(s): Dayanand Sarasvati Swami
Publisher: Dayanand Sarasvati Swami

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Page 62
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सामामिकः॥ संज्ञक हो । अपूर्वनिपाते । पूर्वनिपताख्य जो उपसर्जन कार्य है उस को वर्जि के । निरादयः क्रन्ताद्यर्थे पञ्चम्या । यहां जैसे-पञ्चम्यन्त ही पद का नियम है इसलिये उत्तरपद की उपसर्जनसंज्ञा होती है । निष्क्रान्तः कौशाम्ब्या निष्कौशाम्बिः । यहां उपसर्जनसंज्ञा का प्रयोजन यह है कि स्त्रीपत्यय को हम्व हो जाता है । एक विभक्तीति किम् । राजकुमारी * | अपूर्वनिपात इति किम् । कौशाम्बीनिरिति । यहां कौशाम्बी की उपसर्जनसंज्ञा नहीं होती ॥ गोस्त्रियोरुपमर्जनस्य ॥ १।२ । ४८ ॥ गो इति. स्वरूपग्रहण स्त्रीति प्रत्ययग्रहणं खरितत्त्वात् । इस का अर्थ यह है कि जो चतुर्थ अध्याय में 'त्रियाम् ' इस अधिकार सूत्र करके प्रत्यय कहे हैं, उन का यहां ग्रहण है । स्त्री शब्दान्त प्रातिपदिक को और उपसर्जन स्त्रीप्रत्ययान्त प्रातिपदिक को हूख हो । चित्रगुः । शवलगुः । निष्कौशाम्बिः । निर्वाराणसिः । अतिखट्वः । अतिमालः । उपसर्जनस्येति किम् । राजकुमारी । स्वरितत्वात् किम् । अतितन्त्रीः । भतिलक्ष्मीः । अतिश्रीः ॥ ___कडाराः कर्मधारये ॥ २ । ३ । ३८ ॥ कर्मधारय समास में कडार शब्द का पूर्वनिपात विकल्प करके हो । जैसे- कडार जैमिनिः । जैमिनि कडारः । इत्यादि +॥ परवल्लिङ्गन्छन्द्रतत्पुरुषयोः २।४ । २६ ॥ द्वन्द्व और तत्पुरुष समास में परगद का लिङ्ग हो । द्वन्द्व । कुक्कुटमयूर्याविगे । मयूरीकुक्कुटाविमौ । तत्पुरुष । अर्द्ध पिप्पल्या अद्धपिप्पली । अर्द्धकोशातकी । द्विगुप्राप्तापन्नालंपूर्वगतिसमासेषु प्रतिषेधो वक्तव्यः । द्विगु । प्राप्त | आपन । अलंपूर्वक । तथा गतिसंज्ञक इन समासों में परपद का ___ * यहां एक विभक्ति का नियम इसलिये नहीं है कि जिस षष्ठयन्त की उपसर्जन. संज्ञा होती है उसंस सब विभक्ति आती हैं । जैसे-राज्ञः कुमारी । राज्ञोः कुमार्यो । राज्ञां कुमार्यः । इत्यादि ॥ जो 'प्राक्कडारात्समासः' । इस सूत्र में समास का अधिकार किया था वह पूग हो गया। अब इस के आगे समास में किस पद के लिंग का प्रयोग होना चाहिये इस का आरम्भ हुआ है । For Private and Personal Use Only

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