Book Title: Vedang Prakash
Author(s): Dayanand Sarasvati Swami
Publisher: Dayanand Sarasvati Swami

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Page 67
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सामासिकः ॥ IANAaroranAmanner-o-AAAAAwrvasna - - ईषदर्थे ।। ६ । ३ । १०५॥ किंचित् गर्थ में वर्तमान कुशब्द को उत्तरपद परे हो तो का आदेश हो । ईष. लवणम् । कालवणम् । कामधुरम् । काऽग्लम् । ईषदुष्णम् । काष्णम् ॥ विभाषा पुरुषे ॥ ६ । ३ । १०६ ॥ पुरुष उत्तरपद परे हो तो कुशब्द को का आदेश विकल्प करके हो । कुत्सितः पुरुषः कापुरुषः । कुपुरुषः ॥ कवं चोष्णे ॥ ६ । ३ । १०७ ॥ उष्ण उत्तरपद परे हो तो कुशब्द को कव आदेश विकल्प करके हो पक्ष में का हो । ईषदुष्णम् । कवोणम् । कोणम् । कदुष्णम् ।। पथि च छन्दासि ॥ ६ । ३।१०८ ।। वेद में पथिन् उत्तरपद परे हो तो कुशब्द को कव आदेश हो । पक्ष में विकल्प करके का भी हो । कवपथः । कापथः । कुपथः ॥ . पृषोदरादीनि यथोपदिष्ठम् ॥ ६ । ३ । १०६ ॥ जिन शब्दों में लोप आगम और वर्णविकार किसी सूत्र से विधान न किये हो और वे शिष्ठ पुरुषों ने उच्चारण किये हैं तो वैसे ही उन शब्दों को जानना चाहिये । पृषददरमस्य पृषोदरम् । पृषत् उद्वानम् पृषोद्वानम् । यहां तकार का लोप है । वारिवाहको बलाहकः । यहां वारि शब्द को व आदेश है । तथा वाहक पद के श्रादि को ल आदेश जानो । जीवनस्य मूतो जीमूतः । यहां वन शब्द का लोप है । शवानां शयनम् श्मशानम् । शव शब्द को श्म आदेश और शयन के स्थान में शान जानो । ऊर्ध्व खमस्येति ऊखलम् । यहां ऊर्ध्व को ऊ तथा खशब्द को खल भादेश जानना चाहिये । पिशिताशः पिशाचः । यहां पिशि को पि और ताश के स्थान में शाच आदेश है । ब्रुवन्तोऽस्यां सीदन्तीति वृसी । सदधातु से अधिकरण में डट् प्रत्यय और उपपद ब्रुवत् शब्द को बृ आदेश हो जाता है । मयां रौतीति मयूर । अच् _* यह सूत्र अन्य सब साधुत्व कारक सूत्रों के विषयों को छोड़ के बाकी विषय में प्रवृत्त होता है । For Private and Personal Use Only

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