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॥ सामासिकः ॥...
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त्यदादीनि सनित्यम् ॥ २ । १ । ७२ ॥ यहां नित्य ग्रहण पूर्व विकल्प की निवृत्ति के लिय हैं त्यद् अादि शब्द सब शब्दों के साथ शेष हैं । स च देवदत्तश्च तौ । यश्च देवदत्तश्च यौ । त्यदादीनां मिथो यद्यत्परं तच्छिप्यते । सच यश्च यौ । यश्च कश्च को ।। . .ग्राम्यपशुमंघेष्वतरुणेषु स्त्री ॥ २ । १ । ७३ ॥
ग्राम में रहने वाले पशुओं के समुदाय में स्त्रीवाची शब्द पुरुषवाची शब्द के साथ शेष हैं । पुमान् स्त्रिया । इस सूत्र से पुरुषबाची शब्द का शेष पाया था उन का अपवाद यह सूत्र है । महिषाश्च महिष्यश्च मलिष्य इमाश्चरन्ति । गाव इमाश्चरन्ति । अजा इगाश्चरन्ति । ग्राम्यग्रहणं किम् । रुरव इभे । पृषता इने । पश्विति किम् । ब्राह्म. णाः । क्षत्रियः । संघेष्विति किम् । एतो गावौ चरतः । भतरुणेविति किम् । वत्सा इमे । बर्करा इमे ॥
वा-अनेकशफेष्विति वक्तव्यम् ॥ अनेक शफ अर्थात् जिन पशुओं के खुर दो २ हों कि जैसे-गाय भैंस आदि उन्हीं में यह विधि हो । और यहां न होवे कि-अश्वा इमे । गर्दभा इमे । घाड़े और गधे के खुर जुड़े होते हैं । इस के आगे सामान्य सूत्रों को लिखते हैं जिन में एक स. मास का नियम नहीं है ।
प्रथमानिर्दिष्टं समास उपसर्जनम् ॥ १। २ । ४३ ॥ समास विधायक सूत्रों में प्रथमा विभक्ति से जिस शब्द का उच्चारण किया हो वह उपसर्जन संज्ञक हो । द्वितीया समास में द्वितीया प्रथमानिर्दिष्ट और तृतीया समास में तृतीया प्रथम निर्दिष्ट है । एसे ही और भी जान। । कष्टश्रितः । शङ्कुलया खण्डः ॥
उपसजनं पूर्वम् ॥ २ । २ । ३०॥ इस सूत्र से उपसर्जनसंज्ञक का पूर्व निपात होता है तथा अन्य भी उपसर्जनसंज्ञा के बहुत प्रयोजन हैं सो अपने २ प्रकरण में समझने चाहिये यहां समास में उन के लिखने की आवश्यकता नहीं ॥
एकविभक्ति चापूर्वनिपाते ॥ १ । २ । ४४ ॥ जिस पद की समास विधायक सूत्र में एक ही विभक्ति नियत हो सो उपसर्जन
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