Book Title: Vedang Prakash
Author(s): Dayanand Sarasvati Swami
Publisher: Dayanand Sarasvati Swami

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Page 59
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सामासिकः॥ ANNARAAAAAAAAAAAAAm.nn अव्ययीभाव समास नपुंसक लिङ्ग हो । वा०-पुण्यसुदिभ्यामन्हः क्लीवतेष्यते ॥ जैसे--पुण्यं च तदहश्च पुण्याहम् । सुदिनाहम् ॥ - वा-पथः संख्याध्ययादेः क्लीवतेष्यते ॥ संख्या और अव्यय जिस के आदि में हो ऐसे पथिन् शब्द को नपुंसक लिङ्ग हो । त्रिपथम् । चतुष्पकम् । विपथम् । सुपथम् ॥ वा०-क्रियाविशेषणानां च क्लीवत्ता वक्तव्या ॥ मृदु पचति । शोभनं पचति ।। सरूपाणामेकशेष एकविभक्तौ ।। १ । २ । ६४ ।। जो तुल्यरूप शब्द हों उन का एकविभक्ति परे हो तो एकशेष तथा गन्य रूपों की निवृत्ति हो । वृक्षश्च वृक्षश्च वृक्षौ । वृक्षश्च वृक्षश्च वृक्षश्च वृक्षाः । इत्यादि बहुत उदाहरण होते हैं । सरूपाणामिति किम् । प्लनन्यग्रोधाः । रूपग्रहणं कि.म् । भिन्नप्यर्थे यथा स्यात् । अक्षाः । पादाः । माषा इति । एकग्रहणं किम् । द्विबहोः शेषो मा भत् । एकविभक्ताविति किम् । पयः पयो जरयति । वासो वासश्छादगति । ब्राह्मणाभ्यां च कृतम् । ब्राह्मणाभ्यां च देहीति ॥ वृद्धो यूना तल्लक्षण श्वेदेव विशेषः ॥ १।२ । ६५ ॥ ... जो तल्लक्षण अर्थात् वृद्धपत्ययान्त और युवप्रत्ययान्त ही का विशेष नाम विरूपता हो और मूल प्रकृति समान होवे तो वृद्वनाम गोत्र प्रत्ययान्त शब्द और युव प्रत्ययान्त शब्द का जब एक सङ्ग उच्चारण करें तब वृद्ध शेष रहै और युवा की निवृत्ति हो ( उदाहरण ) गाय॑श्च गर्यायणश्च ती गायों । वात्स्यश्च वात्स्यायनश्च वाल्यौ । वृद्ध इति किम् । गर्गश्च गाायणश्च गर्गगाायणौ । यूगति किम् । गायश्च गर्गश्च गार्यगरौं । तल्लक्षण इति किम् । गार्यवात्स्यायनौ । एवकारः किमर्थः । भागवित्तिश्च । भागवित्तिकश्च । भागवित्तिभागवित्तिको । कुत्सा और सौवीर ये दो अर्थ भागवित्तिक शब्द में युव प्रत्ययान्त से भी अलग हैं। * यहां से एकशेष द्वन्द्व का प्रकरण चलता है । - - For Private and Personal Use Only

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