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॥ सामासिकः॥
स्त्री पुंवच्च ॥ १ । २ । ६६ ॥ अब वृद्धा स्त्री और युवा का एकसङ्ग उच्चारण करें तब वृद्धा स्त्री शेष रहे और युवा की निवृत्ति हो । पुंवत् अर्थात् स्त्री को पुल्लिङ्ग के सदृश कार्य हो जो तल्लक्षण ही विशेष होवे तो । गार्गी च गाग्र्यायणश्च गाग्र्यो वात्सी च वात्स्यायनश्च वात्स्यौ । दाक्षी च दाक्षायणश्च दाक्षी ॥
पुमान् स्त्रिया ॥ १। २ । ६७ ॥ जो तल्लक्षण विशेष होवे तो स्त्री के साथ पुरुष शेष रहै स्त्री निवृत्त हो । जैसेब्राह्मणश्च ब्राह्मणी च ब्राह्मणौ । कुकुटश्च कुक्कुटी च कुक्कुटौ । यहां तल्लक्षण विशेष इसलिये है कि कुक्कुटश्च मयूरीच कुक्कुटगयो । यहां एक शेष न होवे । एवकार इसलिये है कि इन्द्रश्च इन्द्राणी चेन्द्रे द्राण्यौ । यहां इन्द्राणी शब्द में पुयोग की माख्या स्त्रीत्व से पृथक् होने के कारण एकशेष न हो ॥ . भ्रातृपुत्रौ स्वसदुहितृभ्याम् ॥ १। २ । ६८ ।।
प्राय और पुत्र शब्द, यथाक्रम स्वमृ और दुहित के साथ शेष हैं । भ्राता च स्वसा च भ्रातरौ । पुत्रश्च दुहिता च पुत्रौ ॥
नपुंसकमनपुंसकैनैकवच्चास्यान्यतरस्याम् ॥ १ । २ । ६६ ।। नपुंसकलिङ्गवाची शब्द नपुंसकभिन्नवाची शब्द के साथ एक शेष पावे । और नपुंमक को एकवचन भी विकला करके हो । शुक्रच कम्बलः शुक्ला च वृहतिका शुक्लं च वस्त्रं तदिदं शुक्लम् । तानीमानि शुक्लानि । अनपुंसक के साथ इसलिये कहा है कि शुक्लं च शुक्रं च शुक्लं च शुक्लानि । यहां एक वचन न हो ॥
पिता मात्रा॥१।२।७० ॥ मातृशब्द के साथ पितृशब्द विकल्प करके शेष रहे। माता च पिता च पितरौ । मातापितराविति वा ।
श्वशुरः श्वश्वा ॥ १।२ । ७१ ॥ श्वशुर शंउद श्वश्रु शब्द के साथ विकल्प करके शेष रहे । श्वश्र च श्वशुरश्च श्वशुरी । श्वश्रश्वशुराविति वा ।।
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