Book Title: Vedang Prakash
Author(s): Dayanand Sarasvati Swami
Publisher: Dayanand Sarasvati Swami

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Page 58
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सामासिका। वा-बहुपकृतिः फलसेनावनस्पतिमृगशकुनिक्षुद्रजन्तुधान्यतृणानाम् ॥ एषां बहुप्रकृतिरेव द्वन्द्व एकवद्भवति * | न द्विपकृतिः । वदरामलके । रथिका, श्वारोहो । प्लान्ययाधौ । रुरुपृषतौ । हंसचक्रवाकौ। यूकालिखे । ब्रीहियवौ । कुशकाश। ।।' विप्रतिषिद्धं चानधिकरणवाचि ॥ २ । ४ । १३ ॥ जो भिन्न द्रव्यवाची और परस्पर विरुद्धार्थ सुचन्तों का द्वन्द्व, वह एक वचन बिकला कर के हो । शीतोष्णम् । शतोष्णे । सुखदुःखम् । सुखदुःख । जीवितमरणम् । जीवितमरणे । विप्रतिषिद्धमिति किम् । कामक्रोधौ । अनधिकरणवाचिनामिति किम् । शीतोष्णे उदके । न दधिपय प्रादीनि ॥२।४ । १४ ॥ दधिपय आदि शब्दों का द्वन्द्व एकवचन न हो । दधि च पयश्च ते दधिपयसी । सर्पिर्मधुनी । मधुसतिषी । ब्रह्म प्रजापती । शिववैश्रवणी इत्यादि ॥ अधिकरणैतावत्त्वे च ॥ २ । ४ । १५ ॥ अधिकरणवाची द्वन्द्व समास के एतावत्रत्वनाम परिमाण अर्थ में एकवचन हो। चतुस्त्रिंशद्द-तोष्ठाः । दश मार्दशिकपाणविकाः ।। विभाषा समीपे ॥ २ । ४ । १६ ।। अधिकरण के एतावत्व के समीप अर्थ में एकवचन विकला करके हो । उपदशं दन्ते.ष्ठं । उपदशा दन्तोष्ठ: । उपदशं गार्दङ्गिकपाणविक । उपदशा मार्दशिकपाणविकाः ।। स नपुंसकम् ॥ २ । ४ । १७॥ जिस द्विगु और द्वन्द्व को एकवद्भाव विधान किया है सो नपुंसक लिङ्ग होता है ( द्विगु ) पञ्चगवम् । दशगवम् ( द्वन्द्व) पाणिपादम् । शिरोग्रीनम् । इत्यादि ॥ .. परपद का लिङ्ग प्राप्त हुआ था उसका अपवाद यह मूत्र है अव्ययीभावश्च ।। २ । ४ ।।८।। * बहुपकृति अर्थत् जहां बहुवचनान्त शब्दों का द्वन्द्व हो वहीं एकवचन हो ) बदरामलके ) यहां द्विवचनान्त के होने से एकवचन न हुआ ॥ For Private and Personal Use Only

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