Book Title: Vedang Prakash
Author(s): Dayanand Sarasvati Swami
Publisher: Dayanand Sarasvati Swami

View full book text
Previous | Next

Page 48
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सामामिकः ॥ . ४" ran- - - उद्गतो गन्धोऽस्य उद्गन्धिः । पूतिगन्धिः । सुगन्धिः । सुरभिगन्धिः । एतेभ्य इति किम् । तीव्रगन्धो वातः ॥ घा - गन्धस्येत्वे तदेकान्तग्रहणम् ॥ गन्ध शब्द को इत्त्व विधान में उसी का अवयव हो तो इत्व होता है यहां नहीं होता * शाभनो गन्धोऽस्य सुगन्ध आपणः ॥ अल्पाख्यायाम् ॥ ५ । ४ । १३६ ॥ अल्प अर्थ में वर्तमान बहुव्रीहि समासान्त गन्ध शब्द को इत् आदेश हो । जैसे--मपोऽल्पोऽस्मिन् सुपगन्धि भोजनम् । अल्पमस्मिन् भोजने घृतं घृतगन्धि । क्षीरगन्धि । तैलगन्धि । दधि गधि । तक्रगन्धि । इत्यादि । उपमानाच्च ॥ ५ । ४ । १३७॥ उपमान वाची से परे गन्ध शब्द को इत् श्रादेश हो । पद्मस्येव गन्धेोऽस्य पद्मगन्धि । उत्पलस्येव गन्धोऽस्य पुष्पस्य तदुत्पलगन्धि । करीषगन्धि । कुमुदगन्धि ।। - पादस्य लोपोऽहस्त्यादिभ्यः ॥ ५। ४ । १३८॥ बहुमीहि समास में हस्ति श्रादि शब्दों को छोड़ के उपमान वाची शब्द से परे पाद शब्द के प्रकार का लोप हो । व्याघ्रस्येव पादावस्य शुनः स व्याघ्रपात् । सिंहपात् । भहस्त्यादिभ्य इति किम् । हस्तिपादः । कटोलपादः ॥ कुम्भपदीषु च ॥ ५ । ४ । १३६ ॥ कुंभपदी आदि शब्दों में पद शब्द के अकार का लोप निपातन से किया है । कुंभपदी । शतपदी । अष्टापदी । इत्यादि । संख्यासुपूर्वपदस्य च ॥ ५। ४ । १४० ॥ बहुव्रीहि समास में संख्या और सु पूर्वक पाद शब्द के प्रकार का लोप हो । द्वौ पादायस्य द्विपात् । त्रिपात् । चतुष्पात् । शोभनौ पादावस्य सुपात् ।। * गन्ध शब्द सामान्य से गुण का नाम है सो जहां इस शब्द को द्रव्य की विवक्षा न हो वहीं इत् प्रादेश हो और जहां विशेष द्रव्य की विवक्षा में अन्य पदार्थ समास हो वहां इत् आदेश न हो । जैसे-सुगन्ध आपणः । सुन्दर गन्धयुक्त दुकान ॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77