Book Title: Vedang Prakash
Author(s): Dayanand Sarasvati Swami
Publisher: Dayanand Sarasvati Swami

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Page 46
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥सामासिकः ॥ veNNN NARAANAANANA AANWwwwwwwwwwwwmAAAAAAAAAwar सम्रासान्त अच् विकल्प करके हो । जैसे-अविद्यमाना हलिरस्म भहलः । अहलिः । दुईलः । दुईलिः । सुहलः । सुहलिः । अविद्यमानं सक्थ्यस्य प्रसक्थः । असक्थिः । दुःसक्थः । दुःसक्थिः । सुसक्थः । सुसक्थिः । नित्यमसिच् प्रजामेधयोः ।।५।४ । १२२ ॥ नञ् दुस् और सु से परे जो प्रजा और मेधा तदन्त बहुव्रीहिं से नित्यही समासान्त असिच् प्रत्यय हो । जैसे-अविद्यमाना प्रजाऽस्य अपजाः । दुष्प्रजाः । सुप्रजाः । भविद्यमामा मेधाऽस्य अमेधाः । दुर्मेधाः । सुमेधाः । नित्य ग्रहण इसलिये. है। कि पूर्वसूत्र के विकल्प से दो प्रयोग न हों ।। बहुप्रजाइछन्दसि ॥५ । ४ । १२३ ॥ बहुप्रजाः । यह वेद में निपातन किया है । छन्दसीतिः किम् । बहुप्रो बामणः । धर्मादनिच् केवलात् ॥ ५ । ४ । १२४॥ केवल. अर्थात् एकही शब्द से परे जो धर्म शब्द उस से समासान्त अनिच् प्रस्यय हो ।. जैसे-कल्याणो धर्मोऽस्य । कल्याणधर्मा । प्रियधर्मा । केवलादिति किम् । परमः स्वो धर्मोऽस्य । परमस्वधर्मः ॥ जम्भासुहरिततृणसोमेभ्यः ॥ ५। ४ । १२५ ॥ स, हरित, तृण और सोम शब्द से परे यह जम्भा शब्द निपातन किया है। ज-- ग्मा नाम मुख्य. दांतों का और खाने योग्य वस्तु का भी है। शोभनो जम्भोऽस्य सुजम्भा देवदतः । हरितजम्मा। तृणजम्मा । सोमजम्मा । दक्षिणेर्मा लुब्धयोगे ।। ५ । ४ । १२६. ।। दक्षिणेर्मा समासान्त निपातन. किया है। लुब्धयोग. अर्थ में । लुब्धन'म व्याध का है। दक्षिणम व्रणमस्य दक्षिणेर्मा मृगः । ईमैं व्रणमुच्यते । * दक्षिणमझं व्रणितमस्य व्याधेनेत्यर्थः । लुब्धयोग इति किम् ।. दक्षिणेम शकटम् ॥ प्रसंभ्यां जानुनो ः ॥ ५ । ४ । १२६ ॥ * जिस मृग के दक्षिणः पार्श्व में बाणः आदि से क्षत किया हो उस को दक्षिणेर्मा कहते हैं क्योंकि ईर्म क्षत का नाम है ॥ For Private and Personal Use Only

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