Book Title: Vedang Prakash
Author(s): Dayanand Sarasvati Swami
Publisher: Dayanand Sarasvati Swami

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Page 55
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ ॥ सामासिकः ॥ वा-धर्मादिषूभयं पूर्व निपततीति वक्तव्यम् ॥ धर्म श्रादि शब्दों में दोनों पदों का पूर्वनिषात होता है । धर्मार्थों अर्थध । कामार्थो अर्थकामौ । गुणवृद्धि वृद्धिगुणौ । आद्यन्तौ भन्तादी ॥ अजाद्यदन्तम् ।। २ । २ । ३४ ॥ जिस के श्रादि में अच् और अकार अन्त में हो उस पद का पूर्वनिपात होता है। उष्ट्रखरौ । ईशकेशयौ । इन्द्ररामौ । द्वन्द्व ध्यजाद्यदन्तं विप्रतिषेधेन । जहां अजादि छादन्त और घिसंज्ञक का द्वन्द्व सामास हो वहां अजादि अदन्त का पूर्वनिपात होता है। जसे-इन्द्राग्नी । इन्द्रवायू । तपर करणं किम् । अश्वावृष। । वृषाश्वे ॥ द्वन्दश्च प्राणितूर्यसेनाङ्गानाम् ॥ २।४ । २ ॥ - प्राणि तूर्य * और सेना के अङ्गीका जो द्वन्द्वसगास सो एकवचन हो (प्राण्यङ्ग) पाणी च पादौ च पाणिपादम् । शिराग्रीवम् ( तूर्याङ्ग ) मार्दङ्गिकपाणविकम् । वीणावादकपरिवादकम् ( सेनाङ्ग ) रथिकाश्वारोहम् । रथिकपादातम् ।। अनुवादे चरणानाम् ॥ २ । ४ । ३ ॥ अनुवाद । अर्थ में चरणवाची सुबन्तों का जो द्वन्द्व समास सो एक वचन होता है । स्थेणारद्यतन्यां चति वक्तव्यम् । जहां स्था और इण धातु का लंग ककार का प्रयोग हो वहां चरणवाची सुबन्तों का द्वन्द्व एक वचन होता है । उदगान् कठकालापम् । प्रत्यष्ठ त् कठौथुमम् । अनुवाद इति किम् । उद्गुः कठकालापाः । प्रत्यप्ठः कठकौथुगाः । स्थणारिति फिम् । श्रानन्दिषुः कठकालापाः । अद्यतन्यामिति किम् । उद्यन्ति कठकालापाः । इस सूत्र में चरण शब्द उन लोगों का नाम है कि जो वेद की शाखाओं के निमित्त अर्थात् जिन के नाम से इस समय भी शाखा प्रसिद्ध हैं । जैसेकठ । मुण्डक । चरक । सुश्रुत । इत्यादि । अध्वर्युक्रतुरनपुंसकम् ॥ २ । ४ । ४ ॥ जो क्रतुवाची शब्द नपुंसक न हो तो अध्वर्यु नाम यजुर्वेद में विधान किये * ढोल आदि बाजी का यह नाम है ।। + अनुवाद उसे कहते हैं जो पूर्व कहे प्रसंग को किसी प्रयोजन के लिये फिर कहना है । For Private and Personal Use Only

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