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॥ सामासिकः॥
था-ऋतुनक्षत्राणामानुपूर्पण समानाक्षराणां
पूर्वनिपातो वक्तव्यः ॥ ऋतु और नक्षत्र जिस क्रम से पढ़े लिखे और समझे जाते हैं उनका उसी क्रम से पूर्वनिपात होना चाहिये । जैसे-शिशिरवसन्तावुदगयनस्थौ । कृत्तिकारोहिण्यः । चित्रास्वाती !!
पा०-अभ्यहितं पूर्व निपततीति वक्तव्यम् ॥
जहां पूर्वापरनियमपठित शब्द हों उन और जहां साध्य और साधनवाची श. ब्दों का समास किया जाय वहां पूर्वापरनियमित शब्द और साधनवाची शब्दों का पूर्वनिपात होता है । ऋग्यजु सागार्वाणो वेदाः । इत्यादि । माता च पिताच मातापितरौ । श्रद्धा च मेधा च श्रद्धामेधे । दीक्षा च तपश्च दीक्षातपसी.॥ - वा.- लध्वक्षरं पूर्व निपततीति वक्तव्यम् ॥
जिस पद में थोड़ी मात्रा हो उस पद का द्वन्द्वसमास में पूर्वनिपात होता है । कुशाश्च काशाश्च कुशकाशम् । शरचापम् । शरशादम् । अपर श्राह ।। पा.-सर्वत एवाभ्यर्हितं पूर्व निपततीति वक्तव्यम् ।
लघ्वक्षरादपीति ॥ . किन्हीं प्राचार्यों का ऐसा मत है कि सब विधियों का अपवाद होके अभ्यर्षित का ही पूर्वनिपात होना चाहिये । जैसे-दीक्षातपसी । श्रद्धातासी ॥
पा.-वर्णानामानुपूर्येण पूर्वनिपातो भवतीति वक्तव्यम् ॥ बामण भादि वर्गों का यथाक्रम पूर्व निपात जानना चाहिये । ब्राह्मणक्षत्रियविट्शूद्राः ।।
वा०-भ्रातुश्च ज्यापसः पूर्वनिपातो भवतीति वक्तव्यम् ॥ द्वन्द्व सगास में बड़े भाई का पूर्व निपात होता है । युधिष्ठिरार्जुनौ । रामलक्ष्मणा ।। वा.-संख्याया अल्पीयस्याः पूर्वनिपातो भवतीति वक्तव्यम् ॥
द्वन्द्वसमास में अल्पसंख्यावाची शब्दों का पूर्वनिपात होता है । एकादश । द्वादश । वित्राः । त्रिचतुराः । नवतिशतम् ॥
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