Book Title: Vedang Prakash
Author(s): Dayanand Sarasvati Swami
Publisher: Dayanand Sarasvati Swami

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Page 52
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सामासिकः ॥ AAAAAAAAAAAAwww AAAAAAAA वा०-वा प्रियस्य पूर्वनिपातो भवतीति वक्तव्यम् । प्रिय शब्द का विकल्प करके पूर्वनिपात हो । मियधर्मः । धर्मप्रियः ॥ वा-सप्तम्याः पूर्वनिपाते गड्वादिभ्यः परवचनम् ॥ बहुब्रीहि समास में सप्तम्यन्त शब्दों का पूर्वनिपात ( सप्तमी वि० ) इस मूत्र से कर चुके हैं सो गड आदि शब्दों में न हो अर्थात् परनिपात हो । जैसे-गडुकण्ठः । गडशिराः ॥ निष्ठा ॥२ । २ ॥ ३६ ॥ निष्ठान्त शब्द का प्रयोग बहुव्रीहि सगास में पूर्व हो, अधीता विद्या येन अधीतविद्यः । प्रक्षालितहस्तपादः । कृतव.टः । कृतधर्मः । कृतार्थः । संशितव्रतः ॥ - वा-निष्ठायाः पूर्वनिपाते जातिकालसुखादिभ्यः परवचनम् ॥ जहां निष्ठान्त शब्दों का पूर्वनिपात किया है वहां जातिव ची कालवाची और सुखादि शब्दों का पूर्वनिपात न हो अर्थत् परप्रयोग किया जावे । जैसे- शाङ्गजग्धी । पलाएदुभक्षिती । मासजातः । संवत्सरजातः । सुखजातः । दुःखजातः ।। वा०-प्रहरणार्थेभ्यश्च परे निष्ठासप्तम्यौ भवत . इति वक्तव्यम् ॥ शस्त्रवाची शब्दों से परे निष्ठान्त और सप्तम्यन्त शब्द होने चाहियें, असिरुद्यतो येन अस्युद्यतः । मुसलोद्यतः । दण्डपाणिः ॥ वाहिताग्न्यादिषु ॥ २ । २ । ३७ ॥ बहुव्रीहि समास में आहिताग्नि इत्यादि शब्दों में निष्ठान्त का पूर्वनिपात विक.. ल्प करके हो । अग्निराहितो येन अग्न्याहितः श्राहिताग्निः । जात पुत्रः पुत्रजातः । जातदन्तः दन्तजातः । इत्यादि ॥ ॥ अब इस के आगे द्वन्द्वसमास का प्रकरण है। For Private and Personal Use Only

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